लगातार सजते रहे अखाड़े, सदियों पुरानी है जोरआजमाईश की परंपरा
उमरिया। नगर मे हो रहा दंगल का आयोजन इन दिनो चर्चाओं मे है। बहुत दिनो बाद एक बार फिर अखाड़े मे देश के मशहूर पहलवानो भिड़ंत होगी। जिले की धार्मिक साहित्यिक और सामाजिक संस्था श्री रघुराज मानस कला मंदिर द्वारा बहराधाम मे आज 16 एवं 17 नवंबर को कुश्ती का आयोजन किया जायेगा। इसके लिये कई पहलवान पहुंच चुके हैं। संस्था के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक अजय सिंह ने बताया है कि दो दिन चलने वाली दंगल मे प्रात: 11 बजे से 4 बजे तक मुकाबले होंगे। इसमे दो महिलाओं सहित दो दर्जन से ज्यादा पहलवानो के शामिल होने की संभावना है।
सेठ-महाजन भी थे शौकीन
उमरिया मे कुश्ती की परंपरा सदियों पुरानी है। यूं कहें कि यहां की मिट्टी मे ही इस विधा की महक समाई हुई है। एक दौर था जब नगर मे आधा दर्जन से ज्यादा अखाड़े मौजूद थे, जहां आये दिन कुश्तियों का आयोजन हुआ करता था। पहलवानो और नागरिकों के अलावा स्थानीय सेठ, महाजनो को भी कुश्ती का बड़ा शौक था। जिन्होने वर्षो तक दंगलों का आयोजन करा कर इस हुनर को नकेवल संरक्षण दिया बल्कि आगे भी बढ़ाने मे भी अपना योगदान दिया।
गुलजार थे आधा दर्जन अखाड़े
बुजुर्ग बताते हैं कि सन 1950 के आसपास सरावगी जी के बाड़े मे बड़ी कुश्ती का आयोजन हुआ था, जिसकी धमक कई सालों तक बनी रही। इसके उपरांत श्री रघुराज मानस कला मंदिर द्वारा कराये आयोजन ने भी काफी सुर्खियां बटोरीं। लोगों के कुश्ती से प्रेम का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि शहर के बहराधाम बगीचा, सेठ हीरालाल का अखाड़ा के अलावा खलेसर, कैम्प, रमपुरी आदि जगहों पर दोपहर बाद से ही पहलवानो का जमावड़ा शुरू हो जाता था। इनके दांव पेंच देखने वाले भी अखाड़ों के आसपास घंटों बने रहते थे।
इस तरह पहलवान बने पं. भैयालाल
कहा जाता है कि उस समय हिंद केसरी जैसे राष्ट्रीय तमगों के तलबगार देश के कस्बों और शहरों मे घूम-घूम कर लोगों की लडऩे की चुनौती देते थे। इसी तरह एक पहलवान ने नगर के गांधी चौक मे खड़े हो कर जब यहां के लोगों को ललकारा, तो सामने खड़ी भीड़ से एक युवक निकल आया। इसने अपने से ज्यादा मजबूत दिखने वाले पहलवान की चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि उसे घोड़ा-पछाड़ पटकनी देकर नगर की लाज बचाई। इस युवक का नाम था पं. भैयालाल समदरिया। उसी दिन से वे पहलवान भैयालाल बन गये और उनसे प्रेरणा लेकर कई युवाओं मे पहलवानी और कुश्ती का जज्बा पैदा हो गया।
जहां की मिट्टी मे है कुश्ती की महक
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