जंगल के खतरे से अलग शावकों को पाल रही कजरी

गांव के मवेशियों का शिकार कर भर रही अपने बच्चों का पेट
बांधवभूमि, उमरिया। मां अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई भी जोखिम उठाने को तैयार रहती है, बस उसका उद्देश्य इतना ही होता है कि उसके बच्चे सुरिक्षत रहें और उन्हें भोजन की कोई कमी न हो। इसी लिए कहा गया है कि मां तो मां होती है, चाहे वह कोई बाघिन ही क्यों ना हो। यह कहानी एक बाघिन की है जो अपने बच्चों की सुरक्षा की चिंता मे उन्हें गांव के करीब ले आई और यहीं उन्हें पाल रही है। यह अलग बात है कि बाघिन की गांव के इतने करीब होने से गांव के लोग चिंता में हैं और खुद को खतरे मे महसूस कर रहे हैं।
जंगल मे पहुंचा बाघ
यह कहानी मानपुर रेंज के घघोड़ गांव के पास अपना नया ठिकाना बना चुकी कजरी बाघिन की है। जंगल के अंदर जहां कुछ महीने पहले तक बाघिन का ठिकाना था वहां अब एक बाघ पहुंच चुका है। यह बाघ बाघिन के साथ रहना चाहता है लेकिन वह शावकों को साथ नहीं रखना चाहता। बाघिन को महसूस हुआ कि बाघ उसके बच्चों को नुकसान पहुंचा सकता है तो बाघिन ने अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए अपना पुराना ठिकाना छोड़ दिया और घघोड़ गांव के नजदीक नया ठिकाना बना लिया।
शावकों को नहीं करते पसंद
दरअसल जब तक शावक छोटे होते हैं बघिन बाघ को अपने करीब नहीं आने देती। यही कारण है कि बाघ शावकों को पसन्द नहीं करते और बाघिन का सामिप्य चाहने के लिए अक्सर छोटे शावकों को अपना शिकार बना लेते हैं। यहां भी ऐसा ही कुछ हो सकता था लेकिन ऐसा कुछ होने से पहले कजरी सतर्क हो गई और वह अपने शावकों को बाघ से बहुत दूर ग्राम घघोड़ के करीब ले आई। घघोड़ मे बाघिन कजरी मवेशियों का शिकार करती है और उससे अपने बच्चों का पालन कर रही है।
चर्जर-सीता और छोटा भीम-डॉटी अपवाद
बाघ और बाघिनों की ऐसी प्रेम कहानियां बहुत कम है जहां बाघ बिना शावकों को नुकसान पहुंचाए बाधिन के साथ रह पाया हो। ऐसी दो अपवाद बनी कहानियां बांधवगढ़ में है। एक कहानी चार्जर और सीता की है जो बाइस साल से ज्यादा पुरानी है और दूसरी वर्तमान मे छोटा भीम और डॉटी की है। यह दोनों जोड़े अपने पूरे कुनबे का पूरा ख्याल रखते रहे हैं। छोटा भीम तो अभी भी डॉटी के चार शावकों के साथ है क्योंकि डॉटी ने उसके तीन बच्चों को कुछ महीने पहले ही जन्म दिया था।
अभी लगेगा समय
अपने आठ महीने के चार शावकों की सुरक्षा कजरी को अभी कम से कम डेढ़ साल और करनी है। उसके शावक जब दो साल के होंगे तब वे खुद जंगल के दूसरे बाघों का सामना करने के काबिल हो जाएंगे। तब तक कजरी ही उनकी संरक्षक है और वह अपनी यह जिम्मेदारी बाखूबी निभा रही है। वन विभाग कई बार कोशिश कर चुका है कि बाघिन को खदेड़ कर जंगल के अंदर कर दिया जाए, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल रही है।

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