चुनाव मे फ्री ऑफर्स से सुप्रीम कोर्ट नाखुश

कहा- पॉलिटिकल पार्टियां लालच देती हैं, रोक के लिए केंद्र जल्द रास्ता निकाले
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दलों को मुफ्त में उपहार देने से रोकने के लिए समाधान खोजने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अगली सुनवाई के लिए ३ अगस्त की तारीख निर्धारित की है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से कहा कि वह राजनीतिक दलों के मुद्दे पर वित्त आयोग के साथ बातचीत करे और मुफ्त में खर्च किए गए पैसे को ध्यान में रखकर जांच करे कि क्या इस विनियमित करने की संभावना है। मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमणा की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सालिसिटर जनरल के.एम. नटराज से कहा कि कृपया वित्त आयोग से पता करें। इस अगले सप्ताह किसी समय सूचीबद्ध करें। बहस शुरू करने का अधिकार क्या है। सुनवाई के दौरान,न्यायमूर्ति रमना ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो किसी अन्य मामले के लिए अदालत कक्ष में मौजूद थे, सांसद सिब्बल से राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान घोषित मुफ्त उपहारों पर सवाल उठाने वाली एक जनहित याचिका पर उनके विचार पूछे।
राजनीतिक रूप से इसे नियंत्रित करना मुश्किल
रमना ने कहा, श्री सिब्बल यहां एक वरिष्ठ सांसद के रूप में हैं। आपका क्या विचार है? सिब्बल ने जवाब दिया कि मुफ्तखोरी एक गंभीर मामला है, लेकिन राजनीतिक रूप से इसे नियंत्रित करना मुश्किल है। वित्त आयोग को विभिन्न राज्यों को धन आवंटन करते समय उनका कर्ज और मुफ्त योजनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। सिब्बल ने कहा, केंद्र से निर्देश जारी करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि वित्त आयोग इस मुद्दे की जांच करने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण है। चुनाव आयोग के वकील ने सुझाव देकर कहा कि मोदी सरकार मुद्दे से निपटने के लिए एक कानून ला सकती है, हालांकि नटराज ने सुझाव दिया कि यह चुनाव आयोग के क्षेत्र में आता है। इस पर पीठ ने पूछ कि केंद्र इस पर एक स्टैंड लेने से क्यों झिझक रहा है? शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें चुनाव के दौरान मुफ्त में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा की गई घोषणाओं के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
अगले सप्ताह सुनवाई निर्धारित
सुनवाई के दौरान, उपाध्याय ने दलील दी, अगर मैं यूपी का नागरिक हूं, तब मुझे यह जानने का अधिकार है कि हमारे ऊपर कितना कर्ज है। उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव आयोग को राज्य और राष्ट्रीय दलों को इसतरह के वादे करने से रोकना चाहिए। शीर्ष अदालत ने दलीलें सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह निर्धारित की। इस साल अप्रैल में, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त योजनाओं की पेशकश करना राजनीतिक दल का एक नीतिगत निर्णय है, और यह राज्य की नीतियों और पाॢटयों द्वारा लिए गए निर्णयों को विनियमित नहीं कर सकता है।
संविधान का उल्लंघन
उपाध्याय ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है, कि चुनाव से पहले जनता के धन से अतार्किक मुफ्त का वादा, जो सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं है, संविधान के अनुच्छेद १४, १६२, २६६ (३) और २८२ का उल्लंघन करता है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों पर एक शर्त लगाई जानी चाहिए कि वे सार्वजनिक कोष से तर्कहीन मुफ्त का वादा या वितरण नहीं करें। चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि इसका परिणाम ऐसी स्थिति में हो सकता है जहां राजनीतिक दल अपने चुनावी प्रदर्शन को दिखाने से पहले ही अपनी मान्यता खो दे।

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