जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, विश्वास बहाली की कवायद
नई दिल्ली। जम्मू व कश्मीर में अर्धसैनिक बलों की तैनाती को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। गृह मंत्रालय ने केंद्र शासित प्रदेश से अर्धसैनिक बलों की १०० कंपनियों को वापस बुलाने का निर्णय लिया है।जानकारी के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद ३७० खत्म करने के बाद अतिरिक्त कंपनियों को तैनात किया गया था। अब हालातों की समीक्षा के बाद इन्हें हटाने का फैसला किया गया है। माना जा रहा है कि गृह मंत्रालय के इस फैसले को घाटी में विश्वास बहाली के कदम के रूप में देखा जा रहा है। कश्मीर में अनुच्छेद ३७० हटाने से पहले ३० हजार अतिरिक्त सीआरपीएफ जवानों को तैनात किया गया था। इसके अलावा बीएसएफ, सश सीमा बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवानों को भी तैनात किया गया था। हालांकि जवानों की तैनाती को लेकर समय-समय पर समीक्षा की जाती रही है।
यात्रा न होने से खाली हुए जवान
अमरनाथ यात्रा के मद्देनजर भी जवानों को ड्यूटी में लगाया गया था, लेकिन यात्रा के स्थगित होने उन्हें आंतरिक सुरक्षा के लिए लगा दिया गया। गृह मंत्रालय ने जम्मू व कश्मीर में तैनात सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों, सीआरपीएफ और खुफिया विभाग के साथ उच्च स्तरीय बैठक के बाद यह फैसला लिया गया है। मंत्रालय के आदेश के बाद अब कुल १०० कंपनी अर्धसैनिक बलों को कश्मीर से बुलाया जाएगा।माना जा रहा है कि बिहार में इस साल होने वाले चुनावों के मद्देनजर सुरक्षाबलों को वहां भेजा जा सकता है। दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर से सुरक्षाबलों की वापसी के फैसले को एक बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
इस तरह हुई थी तैनाती
केंद्र के निर्देश के मुताबिक, सीआरपीएफ की ४० कंपनियां, सीआईएसएफ की २० कंपनियां, बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स और सश सीमा बल को इसी हफ्ते जम्मू-कश्मीर से बाहर भेजा जाएगा। सीआईएएफ की एक कंपनी में १०० जवान रहते हैं। मई २०२० में गृह मंत्रालय ने सीएपीएफ की १० कंपनियां जम्मू-कश्मीर से हटाई थीं। केंद्र के मौजूदा आदेश के बाद भी जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ की ६० बटालियन रहेंगी। एक बटालियन में एक हजार जवान रहते हैं।
सैन्य गतिविधियों की दुश्मन को नहीं लगेगी भनक
देश की सेना लद्दाख मेंअब बिना दुश्मनों की नजर में आए अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सकेगी। इसके लिए भारत सरकारमनाली से लेह तक एक नई सड़क बनाने की योजना पर काम कर रही है। यह सड़क ऊंचाई वाले इस पहाड़ी केंद्रशासित प्रदेशको बाकी देश से जोड़ने वाली तीसरी ङ्क्षलक होगी। भारत पिछले तीन साल से दौलत बेग ओल्डी समेत रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तरी सब-सेक्टरों को वैकल्पिक कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने पर काम कर रहा है। इसके तहत विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल रोड (उच्चतम वाहन योग्य सड़क) खारदुंगला दर्रा से काम शुरू भी हो गया है। इससे अभी जोजिला पास से होते हुए श्रीनगर और सरचू होते हुए मनाली से लेह जाने की तुलना में काफी कम समय लगेगा। अगर यह सड़क बन जाती है तो मनाली से लेह पहुंचने में लगने वाले समय में तीन से चार घंटे की कमी आएगी। वहीं, सैनिकों और भारी हथियारों की तैनाती करते वक्त पाकिस्तानी और अन्य दुश्मन ताकतों के लिए भारतीय सेना की गतिविधियों पर नजर रख सकने की भी कोई सूरत नहीं होगी। अभी तक वस्तुओं और लोगों के लेह जाने के लिए जिस मार्ग का प्रमुख रूप से इस्तेमाल होता है वह जोजिला से जाता है। यह मार्ग द्रास-करगिल एक्सिस होते हुए लेह तक पहुंचाता है। साल १९९९ में हुए करगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने इस मार्ग को विशेष तौर पर निशाना बनाया था। सूत्रों का कहना है कि इस योजना पर काम शुरू हो चुका है। यह नई सड़क मनाली और लेह को निमू के पास जोड़ेगी।