खैरात नहीं रोजगार दो साहब

बेरोजगारी ने लगाया युवाओं के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह, जिले का कारोबार भी हुआ कमजोर
बांधवभूमि, उमरिया। जिले मे बेरोजगारी की समस्या अब गंभीर हो चली है। उद्योगों की लचर हालत, शासकीय भर्तियों मे वर्षों से लगी रोक, बूढ़ी हो चुकी कोयला खदानों और कोयला उद्योग का निजीकरण इस समस्या का मूल कारण है। इसका असर व्यापार पर भी साफ दिखाई देता है। जिला मुख्यालय की ही बात करें तो एक समय चपहा और पिपरिया कोयला खदानों में करीब 2000 के आसपास कामगार, अधिकारी और कर्मचारी काम करते थे। जिन्हें हर महीने करीब 10 करोड़ वेतन वितरित होता था। यह पूरी रकम किसी न किसी रूप से उमरिया के बाजारों मे ही आती थी, जिससे वे गुलजार रहते थे। अब इन खदानों मे कर्मियों की संख्या घट कर महज 600 के आसपास रह गई है, और कुल वेतन 3 करोड़। इसका सीधा असर कारोबार पर पड़ा है। यही हाल एसईसीएल की अन्य खदानों का है। पाली, नौरोजाबाद तथा विंध्या आदि क्षेत्रों मे संचालित अधिकांश खदाने या तो बंद हो गई हैं या आउटसोर्सिंग के मत्थे चल रही हैं। पाली जनपद के शाहपुर मे स्थित कोल ब्लॉको का ठेका निजी कम्पनी ने ले लिया है। जानकारों के मुताबिक प्राइवेट कंपनिया मशीनों के जरिये 40 साल का कोयला 4 साल मे ही खोद कर ले जायेंगी। ऐसे मे सारा फायदा तो धन्ना सेठों को होगा जबकि स्थानीय लोगों के हाथ आएंगे खंडहर और बेकारी। इस बुरी होती स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है कि सरकार एसईसीएल को ही कोयला उत्पादन का काम करने दे। निजीकरण से हालात बिगड़ते चले जायेंगे।
आर्थिक दिक्कत और महंगाई के कारण लोगों मे निराशा
आर्थिक दिक्कत और महंगाई के कारण लोगों मे निराशा का वातावरण है। जनता मे व्याप्त असंतोष को थामने के लिए सरकारों को मुफ्त अनाज, शिक्षा, इलाज, नगद अनुदान जैसी कई योजनाएं लागू करनी पड़ रही हैं। इसमे करदाताओं का अरबों रुपये लग रहा है। यदि हर हाथ को काम मिल जाय तो सरकारी खैरात की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और लोग अपनी मेहनत से स्वाभिमान के साथ जीवन यापन कर सकेंगे।
दूर देश भटकने को मजबूर नौजवान
रोजगार का साधन न होने से जिले के हजारों नौजवान दिल्ली, छत्तीसगढ़, आंध्रा, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा जैसे राज्यों मे काम करने पर मजबूर हैं। जिन्हें 10 से 20 हजार महीना वेतन मिलता है। कोरोना काल मे लॉकडाउन के दौरान जब ये वापस लौटे तब जानकारी हुई कि उमरिया जिले मे बेरोजगारी की क्या हालत है और यहां के कितने लोगों को अपना घर बार छोड़ कर हजारों किलोमीटर दूर भटकना पड़ता है।
बंद हो आऊटसोर्सिंग का चलन
एसईसीएल, रेलवे, स्वास्थ्य, विद्युत मंडल, नगर पालिका, लोकनिर्माण आदि विभागों मे संधारण, डेवलपमेन्ट सहित कई कार्य अब आउटसोर्सिंग, ठेका पद्धत्तिद्ध से कराये जा रहे हैं। इस प्रक्रिया मे ठेकेदार कर्मचारियों को 5-10 हजार रुपये देकर सारी कमाई खुद हड़प कर जाते हैं। इससे सरकार को भी कोई फायदा नहीं होता। अधिकारी, कर्मचरियों के सेवानिवृत्त होने और नई भर्तियों के अभाव मे विभागों मे अमले की संख्या नगण्य हो गई है। उनके स्थान पर इक्का-दुक्का संविदा कर्मियों को रख लिया गया है। यदि नियमित भर्तियां हो जांय तो उमरिया मे ही हजारों युवकों को तत्काल नौकरी मिल सकती है।
अपराध की ओर बढ़ रहे कदम
रोजमर्रा की जरूरतें और पैसे का अभाव युवाओं मे अवसाद बढ़ा रहा है। उन्हें व्यापार, खेती-किसानी और नौकरी मे कोई भविष्य नहीं दिखाई दे रहा। जबकि जेब खर्च, मोबाइल, बाइक का पेट्रोल, कपड़े तथा अन्य आवश्यकताओं के लिए एक युवा को कम से कम महीने मे 10 हजार रुपये तो चाहिये ही। इन्हें पूरा करने के लिए वे नशे, कबाड़, जुएं जैसे अपराधों की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

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