महामहिम की मोहर लगी तो रद्द होंगे पंचायत चुनाव, सरकार ने खोजा रास्ता
भोपाल। मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर नया मोड़ आ गया है। सरकार ने अंतत: चुनाव निरस्त कराने का रास्ता खोज लिया है। इसी के तहत कैबिनेट ने उस पंचायत राज संशोधन अध्यादेश को ही वापिस लेने का निर्णय लिया है जिसके आधार पर ये चुनाव होने वाले थे। कैबिनेट ने चुनाव निरस्त कराने को लेकर राज्यपाल के पास प्रस्ताव भेजा है। राज्यपाल प्रस्ताव पर मोहर लगाने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव निरस्तीकरण के लिए निर्देश दे सकते हैं। ये जानकारी प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दी। प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बताया कि रविवार को हुआ कैबिनेट की बैठक में सरकार ने फैसला लिया है। पंचायत चुनाव से जुड़े एक अध्यादेश को राज्यपाल को भेज रहे हैं। राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद इसे चुनाव आयोग को भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार पंचायत राज संशोधन अध्यादेश वापस ले रही है। इस पर विधानसभा में विधेयक प्रस्तुत किया जाना था, लेकिन नहीं हो सका।
पहले ही दिये थे संकेत
बता दें कि बीते शुक्रवार को ही नरोत्तम मिश्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि कोरोना के केस बढ़ रहे हैं। ऐसे में व्यक्तिगत राय यह है कि पंचायत चुनाव को टाला जाना चाहिए। कोरोना काल में अन्य राज्यों में पंचायत चुनाव के अच्छे नतीजे सामने नहीं आए हैं। उन्होंने कहा था कि चुनाव किसी की जिंदगी से बड़ा नहीं है। लोगों की जान हमारे लिए पहली प्राथमिकता है। पंचायत चुनावों का हमारा जो पूर्व अनुभव है, अन्य प्रदेशों में चुनाव हुए थे, उनसे लोगों की सेहत को काफी नुकसान हुआ था। मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि कोरोना की दहशत को देखते हुए चुनावों को टाला जाना चाहिए।
बैकफुट पर सरकार
पंचायत चुनाव पर शिवराज सरकार बैकफुट पर आ गई है। इसकी शुरुआत एक माह पहले हो गई थी, जब शिवराज सरकार ने पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार में हुए परिसीमन को रद्द करने और नए रोटेशन के बिना २०१४ के आरक्षण से चुनाव कराने का अध्यादेश जारी किया था। कांग्रेस इसे कोर्ट में चुनौती देगी? सरकार को पता था कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। नतीजा, पंचायत चुनाव टालने का निर्णय लेना पड़ा।
सुको ने लगाई थी फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने १७ दिसंबर को ओबीसी के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य घोषित करने का आदेश दिया था। तब सरकार को फटकार भी लगाई थी। कोर्ट ने कहा था- आग से मत खेलिए। कानून के दायरे में रहकर चुनाव करवाइए। सरकार और बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस पर आरोप लगा दिया था। इसके बाद मामला न्यायालयीन और सरकारी होने के साथ ही राजनीतिक हो गया था। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कांग्रेस से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा पर हमला भी किया था। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने के खिलाफ है।
चला आरोप-प्रत्यारोप का दौर
राज्य निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद सरकार ने कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ना शुरू कर दिया। बीजेपी की तरफ से कहा जाने लगा कि कांग्रेस नहीं चाहती है कि ओबीसी को आरक्षण मिले। कांग्रेस की वजह से ही ओबीसी का हक मारा गया है। इसके जवाब में कांग्रेस ने कहा कि हमने रोटेशन प्रणाली पर सवाल उठाया था। ओबीसी आरक्षण के पक्ष में राज्य सरकार अपना पक्ष सही से नहीं रख पाई है।
टल सकते हैं पांच राज्यों के विस चुनाव
देश में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनाव टल सकते हैं। कोरोना के हालात को लेकर भारतीय चुनाव आयोग चिंतित है। आयोग ने हालात की समीक्षा के लिए सोमवार २७ दिसंबर को मीटिंग बुलाई है। इस मीटिंग में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के साथ स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण भी मौजूद रहेंगे। तीन दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना के हालात देखकर विधानसभा चुनावों को फिलहाल टालने की अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग से की थी। इसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ने अगले सप्ताह उत्तर प्रदेश का दौरा कर हालात का जायजा लेने के बाद कोई फैसला करने की घोषणा की थी।
कैबिनेट ने वापिस लिया अध्यादेश
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