कूनो से भागे चीता ओवान को किया ट्रेंकुलाइज

पिंजरे में डालकर वापस कूनो लाया गया, 5 दिन पहले भागा था

श्योपुरकूनो नेशनल पार्क से भागे चीता ओवान को ट्रेंकुलाइज कर वापस लाया गया है। चीता विशेषज्ञ और डॉक्टरों की टीम ने गुरुवार देर शाम एक खेत में चीते को ट्रेंकुलाइज किया। आज यानी शुक्रवार सुबह उसे वापस कूनो में छोड़ दिया है।चीता ओवान शिवपुरी जिले के जंगल की ओर बढ़ रहा था, उसके लगातार रिहायशी इलाकों में पहुंचने पर कूनो प्रशासन ने यह कदम उठाया। जबकि मादा चीता आशा अभी भी धौरेट सरकार के जंगल में है। बता दें, नामीबिया से 17 सितंबर को 8 चीतों को लाया गया था। इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाड़े में रिलीज किया था। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों की दूसरी खेप कूनो लाई गई थी।
दक्षिण अफ्रीका के एक्सपर्ट ने किया ट्रेंकुलाइज
चीता ओवान गुरुवार को सुबह शिवपुरी जिले के बैराड़ इलाके के डाबरपुरा और रामपुरा गांव के पास खेतों पर पहुंच गया था। वह दिन भर पेड़ के नीचे बैठा रहा। शाम 5 से 5:30 के बीच दक्षिण अफ्रीका के चीता एक्सपर्ट मौके पर पहुंचे।उन्होंने ट्रेंकुलाइज गन तैयार की और धीरे-धीरे चीते के पास पहुंचकर निशाना लगाकर चीते को ट्रेंकुलाइज किया। चीता थोड़ा सा छटपटाया और बेहोश हो गया। फिर डॉक्टर और चीता एक्सपर्ट ने ओवान की आंखों पर पट्टी बांधी। उसे ड्रिप और ऑक्सीजन लगाई। इसके बाद उसे मिलकर पिंजरे में डाल दिया।
स्ट्रेस के डर से नहीं कर रहे थे ट्रेंकुलाइज
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चीता ओवान करीब 5 दिन पहले 2 अप्रैल को कूनो नेशनल पार्क से बाहर निकल गया था। सबसे पहले रविवार को उसे झार बड़ौदा इलाके में देखा गया। इसके बाद वह लगातार अलग-अलग रिहायशी इलाकों में दिखा। गुरुवार को चीता शिवपुरी जिले के बैराड़ इलाके के डाबर पुरा गांव के पास खेतों में पहुंच गया था। शुरुआती दौर में जानकारी सामने आई थी कि चीते को ट्रेंकुलाइज किया जाएगा, तो उसे स्ट्रेस होगा।
धौरेट सरकार के जंगल में रह रही आशा
मादा चीता आशा भी कूनो नेशनल पार्क के रिजर्वेशन से पिछले 4 दिन से बाहर है। हालांकि, वह रिहायशी इलाकों के आसपास न होकर कूनो के बफर जोन इलाके में धौरेट सरकार के जंगल में ही है, जिस पर वन अमला लगातार निगरानी बनाए हुए हैं।
ऐसे करते हैं ट्रेंकुलाइज
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किसी भी जानवर को ट्रैंकुलाइज करने के लिए सिरिंज प्रोजेक्ट फॉर वाइल्ड लाइफ (ट्रैंकुलाइजर गन या डार्ट गन) का इस्तेमाल किया जाता है। इस गन में गोली की जगह CO2 से भरा सिलेंडर होता है। इसे सामान्य बोलचाल में इंजेक्शन भी कहते हैं। गैस सिलेंडर में टारगेट जानवर की दूरी के अनुसार एयर प्रेशर डाला जाता है।ट्रैंकुलाइज करते समय जानवर के अधिक चर्बी वाले हिस्से पर निशाना साधा जाता है। इसके लिए सबसे सेफ जगह थाई और कूल्हा होता है। इसे गर्दन पर भी मारा जा सकता है, लेकिन ये रिस्की भी हो सकता है, इसलिए इससे बचा जाता है। ट्रैंकुलाइज करने के बाद दवा के डोज का असर 35 से 40 मिनट तक रहता है। इस समय के अंदर ही वन्यजीव का चेकअप किया जाता है।
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