किसानो को भा रहे बाजार के दाम

किसानो को भा रहे बाजार के दाम
उपार्जन केन्द्रों की बजाय आढ़त मे गेहूं बेंचने पर ज्यादा सहूलियत
बांधवभूमि, उमरिया
जिले के किसानो को इस बार अपनी फसल बेंचने के लिये सरकारी उपार्जन केन्द्रों की बजाय बाजार का विकल्प ज्यादा मुफीद लग रहा है। यही कारण है कि कई किसान व्यापारियों के यहां अपनी उपज लेकर पहुंच रहे हैं। इसका मुख्य कारण शासकीय खरीद दर और मंडियों की कीमत मे कोई विशेष फर्क नहीं होना है। इतना ही नहीं व्यापारी किसानो से जैसा है, की तर्ज पर माल खरीद रहे हैं जबकि समर्थन मूल्य केन्द्रों मे उन्हे छनाई-फुंकाई कराने के अलावा कई तरह के नाज नखरे सहने पड़ते हैं। इतना ही नहीं व्यापारी फसल का भुगतान भी हाथों-हांथ कर रहे हैं।
केन्द्रों मे कमीशनबाजी और लूट
किसानो का मानना है कि सरकार ने गेहूं खरीद की दर 2015 रूपये प्रति क्विंटल तय कर रखी है। इसमे से 50 रूपये तो कमीशन मे ही चले जाते हैं। वहीं छनाई के बाद उनका माल करीब 75 प्रतिशत रह जाता है, ऐसे मे किसान के हांथ महज 1500 रूपये ही आते हैं। किसानो ने बताया कि केन्द्रों पर मजदूर नहीं रहते। इसलिये गेहूं की छनाई, तुलाई और चौंकने का काम वही करते हैं, ऊपर से मजदूरी भी उन्ही से ली जाती है। बाजार मे भले ही इसके दाम 1900 रूपये हैं पर वहां ऐसी लूट और कमीशनबाजी नहीं है। व्यापारी बिना छाने ही गेहूं खरीद रहे हैं।
30 तक स्लॉट बुक कर सकेंगे किसान
इधर सरकार ने समर्थन मूल्य पर गेहूं बेंचने के लिये स्लॉट बुक करने की तारीख बढ़ा कर 17 से 30 अप्रेल कर दी है। उल्लेखनीय है कि इस बार किसानो को अपने मोबाईल पर ही अपने पसंद का उपार्जन केन्द्र तथा तारीख तय करने की सुविधा दी गई है। वे अपना स्लॉट बुक कर अपनी सुविधा के अनुसार तय तारीख व केन्द्र पर फसल लेकर आ सकते हैं।
16312 किसानो का पंजीयन
विभागीय सूत्रों ने बताया है कि उपार्जन केन्द्रों मे अभी तक 260 किसानो से 6000 क्विंटल गेहूं की खरीद हुई है। रबी फसल की खरीद हेतु जिले मे 36 उपार्जन केन्द्र बनाये गये हैं। जहां विगत 4 अप्रेल से 16 मई तक खरीदी की जायेगी। इस बार 16 हजार 312 किसानो ने अपना पंजीयन कराया है।
बाजार मे महुए के दाम ज्यादा
गेहूं की तरह इस बार महुए के दाम भी सरकारी रेट से ज्यादा है। बताया गया है कि शासन द्वारा जहां महुआ फूल का समर्थन मूल्य 35 रूपये किलो तय किया गया है। वहीं बाजार मे यह 37 रूपये मे आराम से बिक रहा है। जिस वजह से ग्रामीणो और किसानो को वनोपज समितियों की बजाय व्यापारियों के यहां माल बेंचने मे ज्यादा फायदा हो रहा है।

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