गुवाहाटी। केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के वीरों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने असम पहुंचे। इस दौरान रक्षा मंत्री ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में जान गंवाने वाले जाबांजों को याद करते हुए उनके शौर्य को सराहा। रक्षामंत्री सिंह ने कहा कि लोकतंत्र में विरोधी दल भी होते हैं। मैं विरोधी दलों पर आरोप लगाना नहीं चाहता लेकिन कुछ लोग हैं, जो कभी कुछ ऐसी बात बोल देते हैं जिससे लगता है कि हमारे सेना के शौर्य और पराक्रम को छोटा करके देखा जा रहा है, तब मुझे ठेस पहुंचती है। रक्षा मंत्री सिंह ने कहा कि इस बार इंडो-चाइना के टकराव के समय मैंने अपने सेना के शौर्य और पराक्रम को देखा और मेरा भरोसा पक्का हो गया कि दुनिया की कितनी बड़ी ताकत हो, वहां भारत माता की शीश को नहीं झुका सकती है। असम के राज्यपाल जगदीश मुखी और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा भी कार्यक्रम में मौजूद रहे।
सिंह ने कहा कि आप सब जानते ही है कि पिछले साल ही हमने 1971 के युद्ध का ‘स्वर्णिम विजय वर्ष’ मनाया। पूरे देश में 1971 की लड़ाई का क्या महत्व है वह मैं आज यहां दोहराना नहीं चाहता क्योंकि उससे आप सब अच्छी तरह परिचित है। मगर 1971 की लड़ाई ने भारत को एक रणनीतिक बढ़त दी। पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के बनने से सबसे अधिक लाभ नार्थ ईस्ट के राज्यों को हुआ है, क्योंकि सीमा पर जिस तरह का तनाव वेस्टर्न फ्रंट पर देखने को मिलता है, वह कभी भी भारत-बांग्लादेश सीमा पर नहीं रहा है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर शांति और स्थिरता के कारण और केन्द्र और राज्य सरकारों में आए बेहतर तालमेल का ही परिणाम रहा है,कि आज पूर्वोत्तर भारत में शांति और विकास का एक नया दौर प्रारंभ हो चुका है। असम सरकार ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने और देश के लिए प्राणों की आहुति देने वाले राज्य के सशस्त्र बलों के कर्मियों को गुवाहाटी में विशेष कार्यक्रम में सम्मानित करने का निर्णय लिया। असम सरकार की तरफ से 105 कर्मियों को सम्मानित किया गया। जिन्होंने 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था। इनमें से असम के सुरक्षाबलों के 9 कर्मियों के नाम भी शामिल हैं, जिन्होंने 1971 के युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी।
कितनी बड़ी ताकत हो, भारत माता का शीश नहीं झुका सकती : राजनाथ सिंह
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