कायम रहे संविधान की सर्वोच्चता

गणतंत्र दिवस पर विशेष संपादकीय

गणतंत्र दिवस प्रत्येक भारतवासी को स्वाभिमान और गौरव की अनुभूति कराता है। पीढिय़ों के संघर्ष, त्याग, तप और लाखों कुर्बानियों के बाद इसी दिन देश को अपना प्यारा संविधान हांसिल हुआ था। एक ऐसा संविधान जिसकी नजर मे राजा-रंक, मंत्री-संतरी, गरीब-अमीर, पुरूष-महिला, सब समान हैं। यह जात-पात और धर्म-कर्म मे विभेद नहीं करता। सरल भाषा मे समझें तो देश का संविधान वह मौलिक कानून है, जो सरकार के विभिन्न अंगों की रूपरेखा, कार्य निर्धारण तथा नागरिकों के हितों का संरक्षण करता है। इसके बिना किसी भी राष्ट्र की शासन प्रणाली को सुचारू रूप से चलाना नामुमकिन है।संविधान सर्वोच्च है। चाहे न्यायालय हो, सेना या फिर महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री, सभी पद और संस्थायें इसी के मातहत है। इन्हे मिलने वाली शक्तियों का एकमात्र स्त्रोत संविधान है। देश के मूर्धन्य विद्वानो, कानूनविदों और बुद्धिजीवियों वाली संविधान सभा ने गुजरे कल से लेकर आने वाले भविष्य तक की प्रत्येक परिस्थिति का आंकलन और अनुभव करने बाद ही इसे स्वरूप प्रदान किया। इसी का नतीजा है कि आज 73वर्ष बाद भी संविधान की गरिमा और महत्ता बरकरार है।संविधान की ताकत से देश की महत्वपूर्ण संस्थाओं को नकेवल पूरी स्वायतता मिली बल्कि उनके हर निर्णय के आदर की महान परंपरा भी स्थापित की गई। समय-समय पर इन संस्थाओं ने बड़े-बड़े फैंसले किये। वे निर्णय चाहे किसी के पक्ष मे रहे हों या फिर खिलाफ, हर सरकार ने बड़े ही अदब से उन्हे स्वीकार किया। उसी का नतीजा रहा कि जल्दी ही भारत विश्व के सबसे शक्तिशाली लोकतांत्रिक राष्ट्रों मे शुमार हो गया। यह संविधान की ताकत ही है कि एक अदालत ने देश की सबसे मजबूत नेता एवं रायबरेली से सांसद रहीं श्रीमती इंदिरा गांधी की सदस्यता को खारिज करने मे भी कोई गुरेज नहीं किया। वर्तमान परिवेश मे ऐसी घटनाओं की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।लोकतंत्र मे सत्ता, विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका की अपनी-अपनी मर्यादायें हैं। दुनिया मे जहां भी इसका उल्लंघन हुआ वहां अराजकता और गृह युद्ध जैसे हालात बने और ऐसे देशों को वर्षो तक भयानक त्रासदी का सामना करना पड़ा। हमे याद रखना होगा कि जब तक संविधान और उसकी संस्थायें मजबूत हैं, तब तक तानाशाही कभी कामयाब नहीं हो सकती। गणतंत्र की 73वीं वर्षगांठ पर आईये हम सब मिल कर लोकतंत्र के कवच ‘अपने संविधान’ को अक्षुण्य रखने और भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने का संकल्प लें।
जय हिंद, अनंत बधाई, शुभकामनायें।
राजेश शर्मा

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