मप्र मे भाजपा ने 3-1 से जीता उपचुनाव का रण तो हिमाचल प्रदेश मे हुआ सूपड़ा साफ
नई दिल्ली/भोपाल । मध्य प्रदेश में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा ने 3-1 से मुकाबला जीत लिया है। भाजपा ने जहां खंडवा लोकसभा सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा है, वहीं कांग्रेस से जोबट और पृथ्वीपुर छिन लिया है। हालांकि इस मुकाबले में भाजपा को अपनी रैगांव सीट खोनी पड़ी है। लेकिन ओवर ऑल भाजपा को जीत मिली है। पार्टी ने भाजपा की इस जीत का पूरा श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दिया है। चुनाव परिणामों ने दर्शा दिया कि मप्र में मामा का जलवा कायम है। देश में 3 लोकसभा और 13 राज्यों की 29 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में रोचक मुकाबला देखने को मिला है। जहां मप्र में भाजपा ने खंडवा लोकसभा के साथ ही जोबट और पृथ्वीपुर विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है, वहीं हिमाचल प्रदेश में भाजपा को करारा झटका लगा है। राज्य पर भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया है। कांग्रेस ने मंडी लोकसभा के साथ ही तीनों विधानसभा सीटें जीत ली है। खंडवा लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार ज्ञानेश्वर पाटिल ने 81 हजार 701 वोट से जीत हासिल कर ली
हिमाचल के सीएम बोले- महंगाई की वजह से हार
कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट और तीनों विधानसभा सीटें जीत ली हैं। इसके साथ ही राज्य में सरकार चला रही भाजपा का उपचुनाव में सफाया हो गया। मंडी संसदीय सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने भाजपा के रिटायर्ड ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह को 8766 वोटों से हराया। इसके बाद, राज्य के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा- हम महंगाई की वजह से उपचुनाव में हारे। राज्य की अर्की विधानसभा सीट पर कांग्रेस के संजय अवस्थी, जुब्बल-कोटखाई सीट पर रोहित ठाकुर और फतेहपुर सीट पर कांग्रेस के भवानी सिंह पठानिया ने जीत दर्ज की। जुब्बल-कोटखाई सीट पर तो भाजपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रही। उपचुनाव से पहले मंडी लोकसभा सीट और जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीट भाजपा के पास थी वहीं अर्की और फतेहपुर विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास थीं।
ऐलनाबाद में किसान आंदोलन बेअसर
ऐलनाबाद उपचुनाव के दौरान भाजपा के उम्मीदवार गोविंद कांडा को कई जगह किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किसान नेताओं के आह्वान के बावजूद भाजपा उम्मीदवार का प्रदर्शन यहां उम्मीद से बहेतर रहा। दूसरे स्थान पर रहे गोबिंद कांडा को 59189 वोट मिले। यह संख्या किसान आंदोलन के ज्यादा असरकारक नहीं होने की ओर संकेत कर रही है, जो भाजपा के लिए राहत की बात भी है। इंडियन नेशनल लोकदल के एक मात्र विधायक अभय सिंह चौटाला ने तीन कृषि कानून का विरोध करते हुए पद से त्यागपत्र दे दिया था। अभय लगातार किसान आंदोलन को समर्थन देने की बात भी करते रहे। इसके बावजूद उनकी जीत पिछली बार के मुकाबले बहुत फीकी है। क्योंकि पिछली बार उनकी जीत का अंतर 12000 के करीब था। इस बार किसान संगठनों के समर्थन की घोषणा के बावजूद जीत का अंतर 7 हजार से भी नीचे आ गया। भाजपा भले ही इस सीट पर चुनाव हार गई है लेकिन इस हार में पार्टी की बड़ी जीत है। इससे पहले प्रचारित किया जा रहा था कि किसान आंदोलन ने भाजपा को हाशिये पर धकेल दिया है लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आया। गोविंद कांडा को मिले वोट संकेत दे रहे हैं कि इनेलो की पारंपरिक सीट पर ही भाजपा की मतदाता पर पकड़ कमजोर नहीं बल्कि मजबूत हुई है। हरियाणा की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वाले डॉ. राकेश शर्मा ने बताया कि यह भी कहा जा सकता है कि इनेलो का गढ़ अब अभेद्य नहीं रह गया है।
आदिवासी वोट बैंक को साधने में भाजपा की रणनीति सफल
मध्य प्रदेश के उपचुनाव भाजपा के लिए शुभमंगल साबित होता दिख रहा है। खंडवा लोकसभा सीट पर कब्जा बरकरार रखने के साथ ही भाजपा ने जोबट और पृथ्वीपुर सीट कांग्रेस से छीनकर ताकत का अहसास करा दिया है। इस चुनाव में सबसे बड़ा फायदा आदिवासी वोट बैंक के रूप में भाजपा को मिला। इस चुनाव में कांग्रेस ने दमोह मॉडल पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह फेल दिखाई दे रहा है। कांग्रेस भले ही 31 साल से भाजपा के कब्जे वाली रैगांव सीट कब्जा करने में सफल रही, लेकिन इसमें भी बहुजन समाज पार्टी के मैदान में नहीं होने का फायदा मिला। जोबट सीट का रिजल्ट भाजपा के लिए 2023 के आम चुनाव के लिहाज से भी मायने रखता है। आदिवासी वोट की अहमियत का अहसास 2018 के विधानसभा चुनाव में कर चुकी भाजपा के लिए उपचुनाव में भी चुनौती बनी हुई थी। इस चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली।
रैगांव में 31 साल बाद कांग्रेस का सूखा खत्म
रैगांव में कांग्रेस का 31 साल का इंतजार खत्म हो गया। भाजपा के गढ़ में प्रतिमा के हाथों आया कमल मुरझा गया है। भाजपा को बागरी परिवार की अनदेखी यहां भारी पड़ गई है। कांग्रेस प्रत्याशी कल्पना वर्मा ने इस प्रतिष्ठापूर्ण सीट पर भाजपा की प्रतिमा बागरी को हरा दिया। कल्पना वर्मा के दादा ससुर बाला प्रसाद वर्मा भी नागौद से विधायक रहे हैं। अब उनकी बहू रैगांव से विधायक चुनी गई हैं। पूर्व जिला पंचायत सदस्य कल्पना वर्मा ने 2018 में भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन तब वो जुगुल किशोर बागरी से हार गई थीं। उस चुनाव में उन्होंने रैगांव क्षेत्र में वर्षों से तीसरे नंबर पड़ी रही कांग्रेस को दूसरे स्थान तक पहुंचाया था। यही कारण था कि रैगांव में उपचुनाव के ऐलान के बाद से ही कल्पना को टिकट का बड़ा दावेदार माना जा रहा था। कांग्रेस ने उनके नाम पर मुहर लगाई तो कल्पना ने जनता और पार्टी दोनों के विश्वास को जीत कर रैगांव सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। एमएससी पास कल्पना के पति का ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय है।
कांग्रेस गढ़ में सुलोचना की जीत
जोबट में एक बार फिर से लेडी ही फस्ट…। मतदाताओं ने विधानसभा में उलटफेर तो किया, लेकिन अपना विधायक महिला को ही चुना। कांग्रेस की सीट रही जोबट अब भाजपा के खाते में चली गई है। यहां से भाजपा की सुलोचना रावत ने 6 हजार से अधिक मतों से कांग्रेस के महेश पटेल को पराजित कर दिया है। कांग्रेस से भाजपा में आईं सुलोचना पर भाजपा ने भरोसा जताते हुए हफ्तेभर के भीतर ही अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा में बगावत भी हुई, लेकिन बाद में सब थम गया और पूरी पार्टी भाजपा को जिताने में जुट गई। यह सीट कांग्रेस की कलावती भूरिया के निधन के बाद खाली हुई थी। 25 साल के राजनीतिक करियर में सुलोचना का यह दूसरा उपचुनाव था। इससे पहले 1996 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जोबट विधानसभा से ही उपचुनाव में जीत के साथ अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। वे जोबट से तीन बार विधायक रह चुकी हैं। वे इस चुनाव को मिलाकर अब तक 5 चुनाव लड़ चुकी हैं। इनमें से सिर्फ एक बार ही हार का सामना करना पड़ा। खास बात यह है कि पिछले 4 चुनाव में से तीन बार कांग्रेस की सुलोचना के सामने भाजपा के माधोसिंह डावर ही थे, इसमें से दो बार सुलोचना ने जीत दर्ज की थी। इस बार वे भाजपा से लड़ीं और जीती भी।
चुनाव में छाए रहे ये मुद्दे
कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में भाजपा पर महंगाई, बिजली-खाद संकट के साथ ही अन्य मुद्दों को हाइलाइट किया है। कमलनाथ ने तो शिवराज के 17 साल के शासन की कमियां गिनाई। फिर बेरोजगारी, कुपोषण जैसे मुद्दे भी उठाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर क्षेत्र में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। भाजपा ने 12 मंत्रियों और 40 विधायकों को फुलटाइम चुनावी ड्यूटी में लगाए रखा। शिवराज सिंह चौहान ने 39 सभाओं को संबोधित किया। पांच रातें तो उन्होंने निर्वाचन क्षेत्रों में ही बिताईं। कभी किसी आदिवासी के घर भोजन किया तो किसी गरीब के घर जाकर ठहरे। सुबह शेव करने वाला वीडियो भी खूब वायरल हुआ। समय कम बचा था तो पुनासा डैम पर खड़े-खड़े ही एक सभा को संबोधित किया।
कांग्रेस से छीनी 2 सीटें, एक गंवाई
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