एथोनॉल बना इंजिन का दुश्मन

एथोनॉल बना इंजिन का दुश्मन
पेट्रोल मे मिलावट से उपभोक्ताओं को नुकसान, कम्पनियों की चांदी
उमरिया। पिछले दिनो पाली निवासी रंजीत सिंह ने अपनी बाईक मे 500 रूपये का पेट्रोल भरवाया। लौटते समय रास्ते मे बारिश हुई, कुछ देर बाद वे घर पहुंचे और गाड़ी खड़ी कर दी। सुबह होने पर काफी कोशिश के बाद भी जब बाईक स्टार्ट नहीं हुई तो उसे घसीटते हुए मेकेनिक के पास लाना पड़ा, जहां उसने बताया कि टंकी और कार्बोरेटर मे पानी भरा हुआ है। मजबूरन उन्हे पूरी टंकी खाली करवा कर फिर से पेट्रोल भरवाना पड़ा। पेट्रोल के पानी बनने का माजरा रंजीत सिंह को उमरिया के एक पंप पर लटके बोर्ड को पढ़ कर समझ आया, जिसमे एथोनाल संबंधी चेतावनियां लिखी थी। दरअसल भारत सरकार के निर्देश पर पेट्रोलियम कम्पनियां पेट्रोल मे 10 प्रतिशत एथोनॉल मिला रही हैं। यह जानकारी एवं चेतावनी स्वयं कम्पनियां ही दे रही हैं। उनका कहना है कि यदि बारिश या धुलाई के समय जरा भी पानी पेट्रोल मे गया सारा एथोनॉल पानी बन जायेगा।
जिससे गाड़ी चलने मे दिक्कतें आयेंगी।
आटोमोबाईल कम्पनियों ने किया था विरोध
वहीं मैकेनिकों का कहना है कि एथोनाल की मिलावट से जहां लोगों को आये दिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वहीं वाहनो के इंजिन की उम्र भी कम हो रही है। गौरतलब है कि करीब 3 वर्ष पहले आटोमोबाईल कम्पनियों के विरोध के चलते सरकार द्वारा पेट्रोल मे एथोनॉल की मिलावट बंद कर दी गई थी, परंतु कुछ ही दिनो मे इसे फिर से चालू कर दिया गया। सरकार का तर्क है कि इससे पर्यावरण को फायदा होगा। जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि एथोनॉल से पर्यावर्णीय प्रदूषण घटने की बजाय और बढ़ेगा।
ज्यादा कमाई की चाहत
दरअसल यह पूरा मामला भी कमाई से ही जुड़ा हुआ है। जानकारों के मुताबिक एथोनॉल गन्ने से शक्कर बनाने के दौरान निकलने वाला वेस्टेज है। जो पेट्रोलियम कम्पनियां फैक्ट्रियों से मात्र 10 रूपये लीटर से भी कम दामो मे खरीद लेती हैं। पेट्रोल मे मिलाते ही इसकी कीमत 111 रूपये लीटर हो जाती है। इससे सरकार और कम्पनियों को तो रोजाना करोड़ों रूपये की कमाई हो रही है, लेकिन आम आदमी को लूट के सांथ वाहनो मे आये दिन होने वाली दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है।
पंप संचालकों से होती चिकचिक
सरकार की पॉलिसी के तहत ही कम्पनियों द्वारा पेट्रोल मे एथोनॉल की मिलावट की जा रही है। सूत्रों के मुताबिक जल्दी ही सरकार इसे बढ़ा कर 10 से 20 प्रतिशत करने जा रही है। जबकि ग्रांहक इसके लिये पंप संचालकों को दोषी ठहराते हैं। वाहनो मे गड़बड़ी और टंकी से पानी निकलने के बाद कई बार लोग पंपों पर आकर बेवजह चिकचिक करते हैं, जिन्हे समझाने मे संचालकों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

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