ईश्वर एक, रास्ते अलग-अलग
मोहर्रम पर बाबा हुजूर की तकरीर, इबादत से दूर होते संकट और विपदायें
उमरिया। इमाम हुसैन की शहादत को याद दिलाने वाला मातमी पर्व मोहर्रम कल पूरे जिले मे परांपरिक श्रद्घा और विश्वास के सांथ मनाया गया। शहर मे उमरिया वाले बाबा हुजूर की सवारी निकली, जो मुरादगाह, जामा मस्जिद होते हुए करबला पहुंची। इस मौके पर उन्होने अपनी चिर-परिचित शैली मे तकरीर भी की। हुजूर ने कहा कि भले ही रास्ते अलग-अलग हों, पर ईश्वर एक है, उस पर भरोसा रखो। खुदा की इबादत आदमी की हर मुसीबत दूर कर मुश्किलों को आसान बनाती है। इस मौके पर उन्होने देश की बेहतरी, कोरोना महामारी और विपदाओं से निजात दिलाने की दुआ की।
मुरादों से मालामाल हुए जायरीन
शहर का मोहर्रम पर्व हिन्दू-मुस्लिम एकता के सांथ मुराद के लिये भी देश और दुनिया मे जाना जाता है। जो दुख और तकलीफ किसी इलाज से ठीक न हो उसे उमरिया वाले बाबा की मुराद पल भर मे दुरूस्त कर देती है। यही कारण है कि इसे पाने के लिये मातमी त्यौहार पर बड़ी संख्या मे लोगों का यहां आना होता है। कोरोना के कारण बीते दो वर्षो से बाहरी श्रद्धालुओं की आमद कम हुई है, परंतु जिले और आसपास के लोग मुराद पाने की उम्म्ीद से इस बार भी पहंचे। शहादत की रात के बाद मोहर्रम पर भी बाबा हुजूर ने मुरादगाह मे उन्हे दुआओं से मालामाल किया।
मस्तानी चाल, थिरकते मुजावर
मोहर्रम के मौके पर बाबा हुजूर की सवारी जब शहर की सड़कों से होकर गुजरती है तो उनकी शानो शौकत देखते ही बनती है। उनकी मस्तानी चाल से लोग बरबस ही अभिभूत हो जाते है, बाबा की चाल, थिरकते मुजावर और बैंडबाजों की धुन वातावरण मे ऐसा समा बांध देती है कि लोग बस इसे अपनी आंखो मे बसा लेना चाहते हैं। बाबा अपनी मर्जी के मालिक हैं उनकी सवारी मे गजब की तेजी होती है, वे कब और कहां रूक जाये यह कहा नही जा सकता। कहा जाता है कि कई बार ऐसे मौके भी आये हैं जब दीदार से वंचित और निराश होकर लौटते जायरीनो को उन्होने खुद बुलाकर अपनी नेमत बक्शी है। यह उमरिया वाले बाबा की दरिया दिली ही है जो अकस्मात लोगो को यहां खीच लाती है।