इंसानो पर क्यों फूट रहा बाघों का गुस्सा
अब नौगवां का किसान बना हमले का शिकार, सितंबर मे तीसरी घटना
बांधवभूमि न्यूज, दिनेश भारद्वाज
मानपुर। बांधवगढ़ से सटे इलाकों मे इंसान और बाघ सदियों से सांथ-सांथ रहते चले आये हैं। दोनो के बीच की मर्यादा ने खतरे और नुकसान के बावजूद दोस्ती के रिश्ते को हमेशा कायम रखा है। परंतु बीते कुछ दिनो से यह अनुशासन कुछ कमजोर पड़ता दीख रहा है। बुधवार को पनपथा कोर क्षेत्र मे अपनी भैंस खोजने गये राममिलन पटेल पर टाईगर के जानलेवा हमले से पहले सितंबर मांह मे ही दो और घटनायें हो चुकी हैं। ऐसा क्यों हो रहा है, और जानमाल के नुकसान को किस तरह से रोका जाय, इस पर चिंतन अब जरूरी हो गया है। क्योंकि पार्क के आसपास रहने वाले बाशिंदों के बगैर न तो जंगल सुरक्षित रह सकते हैं और नां ही दुर्लभ वन्य जीव।
जबड़े मे दबा लिया चेहरा
बताया जाता है कि राममिलन पनपथा कोर क्षेत्र के जंगल मे अपनी भैंस को तलाशने गया हुआ था, इसी दौरान झुरमुट मे छिपे बाघ ने उस पर हमला कर दिया। बाघ ने रामलाल का पूरा मुंह अपने जबड़े मे भींच लिया। इस घटना के बाद किसान बेहोंश हो गया। यह जानकारी मिलने के बाद परिजनो द्वारा घायल को सामुदाियक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचाया गया, जहां गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे शहडोल रिफर कर दिया गया।
एक ही क्षेत्र मे 3 घटनायें
गुजर रहे सितंबर महीने मे तीसरी बार बाघ ने किसी ग्रामीण को अपना शिकार बनाया है। ये तीनो हादसे पनपथा इलाके मे ही हुए हैं। इससे पहले एक सितंबर को नौगवां-सेहरा बीट तथा 2 सितंबर को जरवाही नदी के पास टाईगर के हमले की घटनायें हुई थी।
इस कारण बढ़ रहा टकराव
बांधवगढ़ के दुर्लभ जानवर भले ही देश और दुनिया के लिये प्रकृति का वरदान माने जाते हों, पर ये स्थानीय ग्रामीणों के लिये किसी मुसीबत से कम नहीं है। इसके पीछे केवल नुकसान ही नहीं सरकार की नीति और प्रबंधन का रवैया भी काफी हद तक जिम्मेदार है। जानकारों का मानना है कि आये दिन किसानो के गाय, बैल और भैंस आदि जानवर बाघ, तेंदुए का शिकार बन कर मौत के मुंह मे समा जाते हैं। एक गाय या भैंस की मृत्यु पर सरकार की ओर से यूं तो अधिकतम मुआवजा 30 हजार रूपये तय है, लेकिन बिरले प्रभावितों को छोड़ कर किसी को भी 5 या 10 हजार रूपये से ज्यादा नुकसानी नहीं मिलती। इसके लिये भी उन्हे महीनो अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं। यही हाल घायलों का है। शासन उनके इलाज का खर्च तो उठाता है पर अंग-भंग या स्थाई अपंगता के लिये क्षतिपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं है। यही कारण है कि संदिग्ध परिस्थितियों मे वन्यजीवों की मौत होने पर स्थानीय लोग प्रबंधन को किसी तरह का सहयोग नहीं करते। यदि ग्रामीणो के सांथ मित्रवत संबंध बनाये जांय और उन्हे बाजार के मूल्य के बराबर क्षतिपूर्ति मिले तो स्थिति काफी हद तक बेहतर हो सकती है।
अध्ययन करे बाघ प्रबंधन: अजय सिंह
जिले के वन्य जीव प्रेमियों ने नेशनल पार्क मे बाघों की मौत और ग्रामीणो पर हमले की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है। मप्र कांग्रेस कमेटी के महासचिव एवं पूर्व विधायक अजय सिंह ने कहा कि बाघ आखिर गावों की ओर क्यों पलायन कर रहे हैं, इस पर उद्यान के अधिकारियों को अध्ययन करने की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि हाल ही के कुछ महीनो मे एक दर्जन से ज्यादा टाईगर की मौत हुई है, जिनमे कई मादा बाघ शामिल हैं। इन घटनाओं की निष्पक्ष जांच होना आवश्यक है।
विचरण क्षेत्रों मे न जांय ग्रामीण
ग्रामीण नेशनल पार्क के उन क्षेत्रों मे जाने से परहेज करें, जहां बाघ आमतौर पर विचरण करते हैं। ऐसे इलाकों से गुजरने के दौरान भी पूरी सतर्कता रखें। इससे जानमाल को खतरा हो सकता है।
विन्सेन्ट रहीम
क्षेत्र संचालक
बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व