आर-पार के मूड में किसान, बोले- अब रेलें रोकेंगे

कृषि मंत्री ने कहा- चर्चा के लिए तैयार
नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने गुरुवार को केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वे रेलवे ट्रैक को अवरुद्ध कर देंगे। जल्द ही ऐसा करने की तारीख की घोषणा कर दी जाएगी।दिल्ली-करनाल रोड की सिंघु सीमा पर संवाददाताओं को संबोधित करते हुए किसानों ने कहा कि वह नए कृषि कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। जिसके लिए लगभग दो सप्ताह से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। किसान संगठनों ने गुरुवार को अपनी बातों को दोहराते हुए कहा कि वे अपने आंदोलन को तेज करेंगे। राष्ट्रीय राजधानी में आने जाने वाले सभी राजमार्गों को अवरुद्ध करना शुरू कर देंगे। यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो जल्द ही रेलवे ट्रैक को बंद कर देंगे। किसान नेता बूटा सिंह ने कहा कि हम तारीख तय करेंगे और जल्द ही इसकी घोषणा करेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने माना है कि यह कानून व्यापारियों के लिए बनाए गए हैं। अगर कृषि राज्य का विषय है, तो केंद्र सरकार को इस पर कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं है। बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि हजारों किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर लगभग दो सप्ताह से बैठे हैं और नए कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
कृषि मंत्री ने रखा सरकार का पक्ष
इससे पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने इन कानूनों पर सरकार का पक्ष रखा और कहा कि किसानों की चिंता वाले प्रावधानों को दुरुस्त करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार किसानों की बेहतरी के लिए काम कर रही है और देश के अन्नदाताओं की स्थिति को सुधारना चाहती है। वहीं, प्रेसवार्ता की शुरुआत में तोमर ने पश्चिम बंगाल में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमले की निंदा की।कृषि कानूनों पर चल रहे किसानों के विरोध को लेकर तोमर ने कहा कि सरकार किसानों को मंडी की बेड़ियों से आजाद करना चाहती थी जिससे वे अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी को भी, अपनी कीमत पर बेच सकें। कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि अभी कोई भी कानून यह नहीं कहता कि तीन दिन बाद उपज बेचने के बाद किसान को उसकी कीमत मिलने का प्रावधान हो जाएगा, लेकिन इस कानून में यह प्रावधान सुनिश्चित किया गया है। उन्होंने कहा कि हमें लगता था कि लोग इसका फायदा उठाएंगे, किसान महंगी फसलों की ओर आकर्षित होगा, बुवाई के समय उसे मूल्य की गारंटी मिल जाएगी और किसान की भूमि को पूरी सुरक्षा देने का प्रबंध किया गया है।

सरकार खुले दिमाग से बात करने के लिए तैयार
तोमर ने कहा कि हमने किसानों के पास एक प्रस्ताव भेजा था। वे चाहते थे कि कानून निरस्त कर दिए जाएं। हम ये कह रहे हैं कि सरकार खुले दिमाग के साथ उन प्रावधानों पर बातचीत करने के लिए तैयार है जिन पर किसानों को आपत्ति है। ये कानून एपीएमसी या एमएसपी को प्रभावित नहीं करते हैं। हमने यह बात किसानों को समझाने की कोशिश की। एमएसपी चलती रहेगी। रबी और खरीफ की खरीद अच्छे से हुई है। एमएसपी को डेढ़ गुना किया गया है, खरीद की वॉल्यूम भी बढ़ाया गया है। एमएसपी के मामले में उन्हें कोई शंका है तो इसे लेकर हम लिखित में आश्वासन देने को तैयार हैं। वार्ता के दौरान कई लोगों ने कहा कि किसान कानून अवैध हैं क्योंकि कृषि राज्य का विषय है और केंद्र सरकार ये नियम नहीं बना सकती है। हमने स्पष्ट किया कि हमारे पास व्यापार पर कानून बनाने का अधिकार है और उन्हें इसके बारे में विस्तार से बताया।

हमने किसानों के साथ संवाद की पूरी कोशिश की
हमने किसानों की समस्याओं को लेकर उनके साथ पूरा संवाद करने की कोशिश की। कई दौर की वार्ताएं कीं। लेकिन उनकी ओर से कोई सुझाव आ ही नहीं रहा था। उनकी एक ही मांग है कि कानूनों को निरस्त कर दो। हम उनसे पूछ रहे हैं कि कानूनों में किन प्रावधानों से किसानों को समस्याएं हैं। लेकिन इस बारे में भी उन्होंने कुछ नहीं किया तो हमने ही ऐसे मुद्दे ढूंढे और उन्हें भेज दिए। जिन प्रावधानों पर किसानों को आपत्ति है सरकार उनका समाधान करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि जमीन विवाद पर हमने प्रावधान किया था कि एसडीएम को 30 दिन में विवाद का निपटारा करना होगा। लेकिन उन्हें लगता है कि अदालत में जाने की सुविधा होनी चाहिए। तो हमने प्रस्ताव रखा है कि हम किसान को इसका विकल्प दे सकते हैं।

किसानों की जमीन पर कोई संकट नहीं आएगा
तोमर ने कहा कि ऐसा कहा जा रहा है कि किसानों की जमीन पर उद्योगपति कब्जा कर लेंगे। गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लंबे समय से चल रही है लेकिन कहीं भी ऐसा देखने को नहीं मिला है कि किसी उद्योगपति ने किसान की जमीन पर कब्जा कर लिया हो। फिर भी हमरे कानून में प्रावधान बनाया है कि इन कानूनों के तहत होने वाला समझौता केवल किसानों की उपज और खरीदने वाले के बीच होगा। इन कानूनों में किसान की जमीन को लेकर किसी लीज या समझौते का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। तोमर ने कहा कि पूरा देश इस बात का गवाह रहा है कि स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट साल 2006 में आई थी। इस रिपोर्ट में एमएसपी को डेढ़ गुना बढ़ाने की सिफारिश तब तक लागू नहीं की गई जब तक नरेंद्र मोदी सरकार ने इसे लागू नहीं किया।

किसान ही रहेगा अपनी जमीन का मालिक
कृषि मंत्री ने कहा कि कानून यह सुनिश्चित करता है कि अगर किसान और खरीदार के बीच कोई समझौता होता है और फसल इस तरह की है कि किसान की जमीन पर कोई ढांचा तैयार करना हो तो समझौता समाप्त होने के बाद उसे उस ढांचे को हटाना पड़ेगा। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उस जमीन पर बने ढांचे का मालिक किसान हो जाएगा। इस बात का प्रावधान कानून में किया गया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसान की जमीन का मालिक वह खुद ही रहेगा और अगर ऐसी स्थिति आती है कि जिसके साथ उसने समझौता किया था वह नियम का पालन नहीं करता है तो हमने वह स्थिति भी किसानों के हित में ही रखी है। वहीं, पीयूष गोयल ने कहा कि कुछ चिंताएं ऐसी थीं कि किसान अपनी उपज को निजी मंडियों में बेचने के लिए मजबूर होगा। यह बिल्कुल गलत है, कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

एमएसपी का इन कानूनों से कोई संबंध नहीं
कृषि मंत्री ने कहा कि एमएसपी के मामले पर सामान्य तौर पर चर्चा होती रहती है, लेकिन एमएसपी का इन कानूनों से कोई संबंध नहीं है। प्रधानमंत्री ने भी और मैंने खुद भी राज्य सभा और लोकसभा में पूरे देश के किसानों को आश्वासन दिया है कि एमएसपी वैसे ही जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि कोई भी कानून पूरा खराब और प्रतिकूल नहीं हो सकता। सरकार बहुत जोर देकर यह कहना चाहती है कि कानून का वह प्रावधान जो किसान के लिए प्रतिकूलता पैदा करता हो, जिसमें किसान का नुकसान दिख रहा हो, उस प्रावधान पर सरकार खुले मन से विचार करने के लिए पहले भी तैयार थी और आगे भी तैयार रहेगी, चर्चा के रास्ते खुले हुए हैं। आज की प्रेसवार्ता का उद्देश्य यही है कि सरकार वार्ता के लिए पूरी तत्पर है। मुझे आशा है कि रास्ता निकलेगा, हमें आशावान रहना चाहिए।

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