आपराधिक केसों में किशोर होने के दावे पर फैसले में अत्यधिक तकनीकी रुख से बचें अदालतें : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा अदालतों को आपराधिक मामलों में किसी आरोपी के किशोर होने के दावे पर फैसला लेने में ‘अत्यधिक तकनीकी रुख’ अपनाने से बचना चाहिए। इसके साथ ही, शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यदि दो मत संभव हों तो अदालतों को आरोपी की उम्र ‘बार्डर लाइन’ पर रहने के मामले में किशोर घोषित करने की ओर झुकाव रखना चाहिए। शीर्ष कोर्ट का यह फैसला पीड़ित के बेटे रिषीपाल सोलंकी की एक अपील खारिज करने के दौरान आया, जिसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में निचली अदालतों के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा था कि आरोपी अपराध करने के समय नाबालिग था। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और नयमूर्ति वीवी नागरत्न की पीठ ने आपराधिक मामलों में किशोर होने के दावे को तय करने वाले फैसलों के ब्योरे की पड़ताल की और निष्कर्षों की समीक्षा की। न्यायालय ने 60 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा इस अदालत का मानना है कि आरोपी किशोर है या नहीं, इसके लिए उसकी उम्र तय करने के सवाल पर विचार करते समय, अत्यधिक तकनीकी रुख नहीं अपनाना चाहिए और यदि दो मत संभव हो तो अदालत को ‘बॉर्डर लाइन’ के मामलों में उसे किशोर करार देने के पक्ष में अपना झुकाव रखना चाहिए। न्यायालय ने उम्र तय करने की प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि साक्ष्य स्कूल से जन्म तिथि प्रमाणपत्र या संबद्ध बोर्ड से जारी मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र हो सकता है। इसके अभाव में नगर निकाय या पंचायत द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र को आधार बनाया जा सकता है। वहीं, इसके भी अभाव में उम्र का निर्धारण कमेटी या बोर्ड के आदेश पर हड्डी की जांच या उम्र का पता लगाने वाली किसी अन्य मेडिकल जांच के जरिए करना होगा।

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