अर्धरात्रि को जन्मे संत गुरुनानक

तीन दिवसीय कार्यक्रम का समापन कल, मंगल भवन मे विशाल भंडारे का आयोजन
उमरिया। समाज को शान्ति और भाईचारे की सीख देने वाले महान संत श्री गुरुनानक देव की 553वीं जयंती सिंधी समाज द्वारा इस वर्ष भी धूमधाम एवं पारंपरिक तरीके से मनाई जा रही है। इस अवसर पर गत 6 नवंबर को सुबह 10.30 बजे स्थानीय मंगल भवन मे श्री गुरु ग्रंथ साहब की स्थापना की गई। जबकि रात्रि मे समाज के होनहार बच्चों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी गईं। पूज्य श्री सिंध पंचायत के अध्यक्ष शंभूलाल खट्टर ने बताया कि अखंड पाठ साहब के समापन एवं गुरु साहब के अवतरण के उपलक्ष्य मे कल 8 नवम्बर को मंगल भवन मे भव्य लंगर होगा। जिसमे हजारों की संख्या मे आम और खास लोग एक साथ प्रसाद ग्रहण करेंगे। उन्होने जिले के गणमान्य नागरिकों से इस पुनीत अवसर पर पहुंच कर पुण्यलाभ लेने की अपील की है।
निकलेगी शोभायात्रा
गुरुनानक जन्मोत्सव के अवसर पर सोमवार को भाई साजन दास गुरूद्वारा मंडली तथा रायपुर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध सिंध म्यूजिकल गु्रप के कलाकारों ने पवित्र गुरूवाणी और धार्मिक भजनो से सभी को ओतप्रोत किया। अर्धरात्रि मे भगवान गुरूनानक देव का जन्म होते ही शंख और घडिय़ाल बज उठे। समाज के लोगों ने एक-दूसरे को गले मिल कर बधाई दी और विश्व को मोक्ष का मार्ग बताने वाले संत का स्वागत किया। भंडारा लंगर आज 8 नवंबर को दोपहर 1 बजे से शुरू होगा। वहीं शाम 6 बजे से विशाल शोभायात्रा मंगल भवन से प्रारंभ होकर पूज्य दादी चैची जी के गुरुद्वारे सिंधी कॉलोनी में संपन्न होगी।
1469 मे हुआ जन्म
गुरुनानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु थे। इनके जन्मदिवस को गुरुनानक जयंती के रूप मे मनाया जाता है। नानक जी का जन्म 1469 मे कार्तिक पूर्णिमा को पंजाब (वर्तमान मे पाकिस्तान) क्षेत्र में रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नाम गांव मे हुआ। नानक जी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम कल्याण या मेहता कालू जी था और माता का नाम तृप्ती देवी था। 16 वर्ष की आयु मे उनका विवाह गुरदासपुर जिले के लाखौ की नाम स्थान की रहने वाली कन्या सुलक्खनी से हुआ। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लख्मी चंद थें। दोनों पुत्रों के जन्म के बाद गुरुनानक देवी जी अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। ये चारों ओर घूमकर उपदेश देने लगे। 1521 तक इन्होने तीन यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमे भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य-मुख्य स्थान शामिल हैं।
रूढ़ीवाद और कुसंस्कारों का विरोध
गुरुनानक देव जी मूर्तिपूजा को निरर्थक माना और हमेशा ही रूढिय़ो और कुसंस्कारों के विरोध मे रहे। नानक जी के अनुसार ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है। तत्कालीन इब्राहीम लोदी ने उन्हे कैद तक कर लिया था। आखिर मे पानीपत की लड़ाई मे इब्राहीम हार गया और राज्य बाबर के हाथों मे आ गया, तब इनको कैद से मुक्ति मिली।
करतारपुर मे बसाया नगर
गुरुनानक जी के विचारों से समाज में परिवर्तन हुआ। नानक जी ने करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्थान पर एक नगर बसाया और धर्मशाला भी बनवाई। नानक जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 ईस्वी को हुआ। मृत्यु से पहले उन्होने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनायाए जो बाद मे गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।

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