नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लोकसभा, राज्यसभा व विधानसभा के अध्यक्षों के द्वारा अयोग्यता आवेदनों के निपटारे की समयसीमा तय करने का कानून बनाना विधायिका का काम है। इसे संसद को ही करना चाहिए, कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। सीजेआई एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, हम कैसे कानून बना सकते हैं? ये मामला संसद का है। पीठ पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमिटी के सदस्य राणाजीत मुखर्जी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें मुखर्जी ने स्पीकर द्वारा सदस्यों की अयोग्यता आवेदनों का तय समयसीमा में निपटारा करने के संबंध में कोर्ट से केंद्र सरकार को दिशा-निर्देश बनाने का आदेश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक जबराज ने पीठ से कहा, हम चाहते हैं कि अयोग्यता आवेदनों का निपटारा एक तय समयसीमा के भीतर होना चाहिए क्योंकि ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि स्पीकर, अयोग्यता आवेदनों को लेकर बैठ जाते हैं। इस पर सीजेआई ने कहा, हम कर्नाटक के विधायकों वाले मामले में अपना मत दे चुके हैं। तब वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने यही दलील दी थी और तब भी हमने फैसला संसद पर छोड़ दिया था। पीठ ने पूछा, क्या आपने उस फैसले को पढ़ा है। वकील का जवाब नहीं में आने पर पीठ ने उन्हें उस फैसले को पढ़कर आने को कहा। सुप्रीम कोर्ट अब दो हफ्ते बाद इस मामले में सुनवाई करेगा।
अयोग्यता आवेदनों के निपटारे की समयसीमा का कानून बनाना संसद का कामसु:प्रीम कोर्ट
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