निर्माण मे फिर लगा अड़ंगा, नागरिकों मे भारी निराशा और रोष का वातावरण
बांधवभूमि, उमरिया
जिला मुख्यालय मे संचालित केन्द्रीय विद्यालय के भवन पर लगा ग्रहण अभी भी छटने का नाम नहीं ले रहा है। कभी पसंद की भूमि न मिलने तो कभी विभाग के इंजीनियरों की आपत्तियोंं के चलते एक दशक से भी ज्यादा समय बीत गया पर बिल्डिंग नहीं बन सकी। कई समस्याओं से जूूझते-जूझते बात पटरी पर आई और भवन निर्माण के टेण्डर भी हो गये, परंतु जब काम शुरू होने को आया, तो सीमा विवाद ने सिर उठा दिया और स्थिति ढाक के तीन पात जैसी हो गई। स्कूल भवन के निर्माण मे अड़ंगा लगने से नागरिकों मे भारी निराशा और रोश है।
कुंवर अर्जुन सिंह ने दी थी सौगात
गौरतलब है कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मांग पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्व. अर्जुन सिंह ने करीब 13 वर्ष पूर्व इस आदिवासी बाहुल्य जिले मे शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिये केन्द्रीय विद्यालय की सौगात दी थी। उस समय स्वीकृत सभी स्कूलों की भव्य इमारतें कब की तैयार हो गई, लेकिन अफसरों की लालफीताशाही और नुमाईन्दों की संवेदनहीनता के कारण उमरिया का केन्द्रीय विद्यालय आज भी जर्जर और व्यवस्थारहित भवन मे संचालित हो रहा है।
नये भवन से यह होगा फायदा
केन्द्रीय विद्यालय मे पर्याप्त और व्यवस्थित स्थान न होने से जहां बच्चों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं यहां केवल हाईस्कूल तक की कक्षायें ही संचालित हो पा रही हैं। जानकारी के मुताबिक फिलहाल विद्यालय मे मात्र 420 छात्रों के पंजीयन की गुंजाईश है। नया भवन बनने से नकेवल यह संख्या 1000 हो जायेगी, बल्कि 11वीं तथा 12वीं की कक्षाओं का संचालन तथा डबल सेक्शन मे शिक्षण सुलभ हो सकेगा।
क्या है मामला
दरअसल वर्ष 2013 मे जिला प्रशासन द्वारा समस्त प्रक्रियाएं पूरी करने के उपरांत जिला मुख्यालय स्थित बाधवगढ तहसील की खसरा नंबर 178/1 की 3.37 एकड़ एवं 165/1 की 3.75 एकड़ भूमि केन्द्रीय विद्यालय के लिये आवंटित कर दी गई थी। जिसके बाद इस पर विद्यालय भवन निर्माण की कार्यवाही शुरू हुई। बताया जाता है कि केन्द्रीय विद्यालय संगठन के निर्देश पर भवन निर्माण का टेण्डर भी हो गया, इसी दौरान वन विभाग ने यह कहते हुए आपत्ति कर दी कि उक्त भूमि वन विकास निगम की है।
दस साल तक मौन रहा प्रबंधन
इस सबंध मे वनमण्डलाधिकारी मोहित सूद का कहना है कि वर्ष 2013 मे तत्कालीन कलेक्टर द्वारा भूमि आवंटित करने के बाद दस साल तक केन्द्रीय विद्यालय प्रबंधन ने कभी भी इस संबंध मे कोई एप्रोच नहीं किया। विगत मांह जब भवन निर्माण का कार्य आदेश हुआ तब जा कर उनकी ओर से कवायद शुरू हुई। विभागीय अमले द्वारा रोके जाने पर उनकी ओर से इस संबंध मे पत्र लिखा गया। जिस पर वन विभाग ने उन्हे खसरा, नक्शा और जीपीएस डीटेल प्रस्तुत करने को कहा। जब मिलान किया गया तो आवंटित भूमि वन विकास निगम के कक्ष क्रमांक 211 की निकली। उनका कहना है कि भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देश हैं कि वन भूमि पर बिना अनुमति लिये कोई निर्माण नहीं हो सकता।
पेचीदिगियों मे फंसा मामला
सवाल उठता है कि किसी भी शासकीय भूमि के आवंटन से पूर्व राजस्व विभाग अपनी ओर से पूरी तहकीकात करता है। जिसमे सीमांकन, दावा-आपत्ति जैसी कार्यवाहियां शामिल है। यह सब होने के बावजूद केन्द्रीय विद्यालय को मिली भूमि कैसे विवादित हो गई। कुल मिला कर भारी मशक्कत से जिले को मिले केन्द्रीय विद्यालय के भवन का मसला एक बार फिर पेचीदिगियों मे फंस गया है। इसके लिये जिला प्रशासन, स्कूल प्रबंधन तथा वन विभाग के सांथ ही क्षेत्रीय सांसद को भी गंभीर पहल करनी होगी।
अभी नहीं मिली सूचना
केन्द्रीय विद्यालय भवन की भूमि के संबंध मे राजस्व और वन विभाग द्वारा संयुक्त सीमांकन की कार्यवाही की गई है। उसका प्रतिवेदन अथवा वन विभाग की ओर से इस संबंध मे कोई लिखित सूचना आने पर संस्था के वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया जायेगा। उनसे मार्गदर्शन लेकर आगे की कार्यवाही की जायेगी।
प्रफुल्ल शर्मा
प्रिंसिपल
केन्द्रीय विद्यालय, उमरिया
विभाग भी करेगा सहयोग
हमारी ओर से 5 जुलाई 23 को ही आवंटित जमीन वनभूमि होने की सूचना संबंधित अधिकारियों को दी जा चुकी है। उक्त भूमि को प्राप्त करने के लिये भारत सरकार के समक्ष ऑनलाईन आवेदन करना होता है। केन्द्रीय स्कूल और वन विभाग की जमीन दोनो ही भारत सरकार के अधीन हैं। यह कोई मुश्किल कार्य नहीं है। इसमे विभाग की ओर से भी पूर्ण सहयोग किया जायेगा।
मोहित सूद
वन मण्डलाधिकारी, उमरिया