वनराज पर मंडरा रहा कंरट का खतरा

पचास साल से दौड़ रहे विद्युत लाईन से कब सुरक्षित होंगे बांधवगढ़ के बाघ
उमरिया। जंगल के अंदर दौड़ रहे करंट से बांधवगढ़ के वनराज कब सुरक्षित होंगे यह एक बड़ा सवाल है। बांधवगढ़ नेशनल पार्क से 190 किमी की विद्युत लाईन गुजरती है और ये लाईन लगभग 50 साल पुरानी है। इतनी पुरानी लाईन मे दौड़ रहा हाई वोल्टेज करंट यहां के जानवरों के लिए कितना बड़ा खतरा है इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी लाइन से कंटिया फंसकर कई बार बाघों का शिकार किया जा चुका है।
दुर्घटना का कारण बनता है करंट
जंगल के अंदर दौड़ रहे करंट के कारण सिर्फ शिकार की घटनाएं ही नहीं हो रही हैं बल्कि कई बड़ी दुर्घटनाएं भी यहां हो चुकी हैं। इस लाईन के एक हिस्से के टूट जाने की वजह से कुछ साल पहले एक तेंदुए के शावक की मौत हो गई थी। तेंदुए की मौत के बाद भी काफी हंगामा हुआ था लेकिन फिर मामला ठंडे बस्ते मे चला गया। तेंदुए के साथ हुई दुर्घटना के बाद बांधवगढ़ प्रबंधन ने एमपीईबी के स्थानीय डिस्ट्रिक्ट कार्यालय को एक नोटिस भेजा था। नोटिस में जर्जर लाईन मे जल्द से जल्द दुरूस्त कर लेने के लिए कहा गया था। इस नोटिस मे कहा गया था कि यदि लाईन को दुरूस्त नहीं किया जाता है तो दुर्घटना की कभी भी पुनरावृत्ति हो सकती है। दरअसल ये मामला सिर्फ लाइन को दुरूस्त करने से सुलझने वाला नहीं है बल्कि लाइन को इंसुलेटेड करना भी जरूरी है।
बफर और कोर से गुजरती है हाईटेंशन लाईन
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के अंदर 190 किमी की हाईटेंशन लाईन गुजर रही है। इसमें से 125 किमी लंबी लाईन पार्क के बफर जोन से होकर गुजरती है जबकि 65 किमी लंबी लाईन पार्क के कोर एरिया के बीच से निकाली गई है। यह लाईन 11 केव्ही और 33 केव्ही की है। जिससे जानवरों पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है। इसी हाईटेंशन लाईन से शिकारी जंगल के अंदर करंट फैला देते हैं जिससे जानवरों पर खतरा बना रहता है और इसी लाईन की वजह से तेंदुए की मौत जैसी घटना का खतरा भी बना रहता है।
हादसों से नहीं लिया सबक
पार्क के अंदर करंट की वजह से कई बाघ और तेंदुए की मौत हो चुकी है। इसके
बावजूद सबक नहीं लिया गया। 18 नवंबर 2012 को पार्क के खितौली रेंज के पचपेढ़ी मे एक बाघ की मौत करंट की चपेट मे आ जाने से हो गई थी। इस घटना मे एक मवेशी के साथ बाघ बुरी तरह से जल गया था। दिसंबर 2012 मे घुनघुटी और बांधवगढ़ के कटनी जिले के क्षेत्र मे एक बाघ की मौत करंट की चपेट मे आने से हो गई थी। कुछ साल पहले धमोखर के बरूहा नाले मे रेडियो कॉलर वाली बाघिन का शिकार करंट लगाकर किया गया था।
1970 मे डाली गई थी लाईन
जंगल के अन्दर से गुजरने वाला करंट के लिए लाईन 1970 मे डाली गई थी।
1970 मे डाली गई यह लाईन जर्जर हो गई है जिसके सुधार के लिए लिए भी कई बार विद्युत मंडल से वन प्रबंधन कह चुका है। हालांकि बिजली विभाग आवश्यकता अनुसार समय-समय पर सुधार का कार्य करता रहता है लेकिन इन कार्यों से जंगल के जानवरों को किसी तरह की सुरक्षा मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
इंसुलेशन ही उपाय
जंगल के अंदर से गुजरने वाली लाईन को इंसुलेटेड करना ही जानवरों की सुरक्षा का सही उपाय है और इस दिशा मे न जाने क्यों दोनों ही विभाग अभी तक गंभीरता से ध्यान क्यों नहीं दे पाए हैं। वर्ष 2012 मे जंगल से गुजरने वाली लाईन को इंसुलेटेड करने का प्रस्ताव स्थानीय प्रबंधन ने वन विभाग को भेजा था जिस पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यही कारण है कि बिजली के खुले तार जंगल से आज भी गुजर रहे हैं और जानवर इस करंट का शिकार हो रहे हैं। यदि इस दिशा मे अभी भी गंभीरता पूर्वक ध्यान नहीं दिया गया तो जानवर इसी तरह करंट का शिकार होते रहेंगे।

Advertisements
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *