राफेल डील से जुड़ी याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने की कई अहम मामलों की सुनवाई
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को ठुकरा दिया, जिसमें भारत और फ्रांस के बीच हुए 36 राफेल फाइटर जेट के समझौते की जांच की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच ने याचिकाकर्ता एमएल शर्मा को अपील वापस लेने की इजाजत भी दे दी। दरअसल, कोर्ट में वकील एमएल शर्मा ने कहा था कि राफेल डील में भ्रष्टाचार से जुड़े कई सबूत मिले हैं। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि दसौ एविएशन की तरफ से इस डील को हासिल करने के लिए बिचौलियों को एक अरब यूरो की रिश्वत दी गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई से साफ कर दिया है। कोर्ट ने शर्मा को छूट दी कि वे इस याचिका को खुद से ही वापस ले लें। इससे पहले 14 दिसंबर 2018 को भी सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल डील की जांच वाली याचिकाओं को रद्द कर दिया था। तब कोर्ट ने कहा था कि समझौते में फैसलों की प्रक्रिया पर कोई संदिग्धता नहीं देखी गई, जिससे कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन हुआ हो। सुप्रीम कोर्ट ने भड़काऊ भाषण से जुड़े हरिद्वार धर्म संसद मामले के आरोपी सरेंडर करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने आरोपी जितेंद्र नारायण त्यागी को दो सितंबर तक आत्मसमर्पण करने को कहा है। वसीम रिजवी के नाम से जाने जाने वाले त्यागी फिलहाल मेडिकल आधार पर जमानत पर हैं। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने चिकित्सकीय आधार पर पहले दी गई जमानत की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह त्यागी की नियमित जमानत याचिका पर नौ सितंबर को विचार करेगी।इससे पहले शीर्ष अदालत ने 17 मई को त्यागी को तीन महीने की अंतरिम जमानत दी थी। कोर्ट ने उनसे यह हलफनामा देने का निर्देश दिया था कि वह कोई भड़काऊ भाषण नहीं देंगे। इसके अलावा उन्हें इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल या सोशल मीडिया पर ऐसे बयानों से बचने को कहा गया था। मार्च में उत्तराखंड हाइकोर्ट से उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद त्यागी ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
वालापुर-हरिद्वार निवासी नदीम अली की शिकायत पर इस साल दो जनवरी को हरिद्वार कोतवाली में त्यागी और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। आरोप लगाया गया था कि पिछले साल 17 से 19 दिसंबर तक हिंदू संतों द्वारा हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में शामिल लोगों ने भउ़काऊ भाषण दिए थे।

पत्रकार की जमानत याचिका पर उप्र सरकार से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के पत्रकार सिद्दिकी कप्पन की जमानत याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। कप्पन को अक्टूबर 2020 में हाथरस में कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार पीड़िता की मौत के बाद वहां जाते वक्त रास्ते में गिरफ्तार कर लिया गया था। चीफ जस्टिस यूयू ललित व जस्टिस एस. रवीन्द्र भट्ट की पीठ ने उत्तर प्रदेश के गृह विभाग से कप्पन की याचिका पर पांच सितंबर तक जबाव देने को कहा। याचिका पर अगली सुनवाई चार दिन बाद होगी।
केंद्र ने राज्यों के साथ बैठक के लिए समय मांगा
राज्य स्तर पर हिंदुओं समेत अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की पहचान के मुद्दे पर राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों के साथ बैठकें करने के लिए केंद्र सरकार ने शीर्ष कोर्ट से और समय मांगा है। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका के जवाब में अदालत में जमा की गई स्थिति रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने कहा कि नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और केंद्र-शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर समेत कुछ राज्यों की सरकारों से अभी तक विचार प्राप्त नहीं हुए हैं। इन राज्यों से एक बार फिर उनकी टिप्पणियां देने का अनुरोध किया गया है। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की टिप्पणियों का भी इंतजार है।
नवलखा की याचिका पर सुनवाई से हटे जज
शीर्ष न्यायालय के जस्टिस रवींद्र भट्ट ने जेल में बंद कार्यकर्ता गौतम नवलखा की एक याचिका पर सुनवाई से सोमवार को खुद को अलग कर लिया। याचिका में एल्गार-परिषद मामले में न्यायिक हिरासत के बजाय घर में नजरबंद करने का अनुरोध किया गया है। पीठ में प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित के साथ शामिल न्यायमूर्ति भट्ट ने सुनवाई शुरू होने पर उसमें भाग लेने में असमर्थता जताई। हालांकि, उन्होंने विस्तार से वजह नहीं बताई।
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