महान व्यंगकार की याद मे महाकवियों का समागम, मंगलभवन मे हुआ शुभारंभ
बांधवभूमि, उमरिया
प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की जन्मशती के उपलक्ष्य मे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान मे वातायन साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय आयोजन का शुभारंभ शनिवार को स्थानीय मंगल भवन मे किया गया। आयोजन मे जयपुर से पधारे मुख्य वक्ता, प्रतिष्ठित लेखक डॉ. मोहन श्रोत्रिय, मुख्य अतिथि लेखक एवं संपादक आलोक श्रीवास्तव तथा अध्यक्ष वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र दाणी रहे। उद्घाटन सत्र का संचालन कवि एवं अनुवादक प्रो. मणि मोहन मेहता ने किया। आमंत्रित अतिथियों का स्वागत करते हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन की उमरिया इकाई के अध्यक्ष संतोष कुमार द्विवेदी ने कहा कि कबीर की आध्यात्मिक चेतना से अनुप्राणित उमरिया कोयला और ऊर्जा उत्पादन के साथ आदिवासी लोककला और शिल्प की भूमि है। प्रकृति के अकूत उपहारों के सांथ अभाव भरा लोकजीवन की विडंबना लिए इस जिले मे कवियों, लेखकों, साहित्यकारों का स्वागत है। सामाजिक विडंबना को चुटकीले व्यंग्य में ढालने वाले व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के व्यंग लेख अकाल उत्सव का पाठ जबलपुर के कवि विवेक चतुर्वेदी ने किया।
नेहरू ने भी किया आलोचना का सम्मान
महान व्यंगकार स्व. परसाई की याद मे आयोजित महाकवियों के महाकुभ को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता डॉ. मोहन श्रोत्रिय ने कहा कि राजनीति की जटिलता को समझाने मे परसाई लोक शिक्षक की भूमिका निभाते हैं। वे कहीं नेहरू के मिश्रित अर्थव्यवस्था के खतरे के प्रति आगाह करते हैं तो कहीं जयप्रकाश की अमूर्त क्रांति की दिशा की पड़ताल करते हैं। मुख्य अतिथि आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि परसाई जन पक्षधरता के लेखक हैं। नेहरू ने आजाद भारत के सामने अडी चुनौती का सामना करते हुए परसाई और दिनकर की आलोचना को सम्मान के साथ समझा। उनके रहते साम्प्रदायिकता और पूंजीवाद देश पर हावी नहीं हो सका। परसाई यदि आज होते तो क्या उस बेबाकी से लिख पाते।
दरबारी नहीं, दरबार से लडऩे का लेखन
अध्यक्षीय उद्बोधन मे कथाकार राजेंद्र दाणी ने कहा परसाई यदि आज होते तो सत्ता के नकली मुखौटे को उतारने के लिए लिख रहे होते। उद्घाटन सत्र मे हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पलाश सुरजन, महेश कटारे, सुगम नवगीतकार, रामनिहोर तिवारी, राजा अवस्थी, विवेक चतुर्वेदी, रामलखन सिंह चौहान, भूपेंद्र त्रिपाठी, भूपेश भूषण, रंगकर्मी इश्ताक शहडोली आदि उपस्थित थे। दूसरे सत्र मे डॉ. श्रद्धा श्रीवास्तव ने कहा अपनी कहानियों मे परसाई बाजार के बिंब उभारते हुए अशोकारिष्ट और शंखपुष्पी जैसे पात्र चुनते हैं। डॉ. सेवाराम त्रिपाठी कहते हैं उन्होंने व्यंग्य के इतर अपने लेखन मे भी व्यंग्य का पुट रखा है। डॉ. जीवन सिंह कहते हैं परसाई का लेखन दरबारी नहीं है। उनका लेखन दरबार से लडऩा सिखाने के लिए है।
राजनीति के लोक शिक्षक की भूमिका निभाते परसाई
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