इलाहाबाद। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को खारिज करते हुए कहा कि दोषसिद्धि बिना पुष्टि के केवल मृत्यु पूर्व दिए गए बयान के आधार पर हो सकती है। मामले में हाई कोर्ट ने आग लगाकर एक महिला को मार डालने के आरोपित उसके ससुर और देवर को बरी कर दिया था। शीर्ष अदालत ने महिला के मृत्यु से पहले के बयान पर भरोसा करते हुए, जो एक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था, निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया, जिसने दोनों आरोपितों को दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए गए मृत्यु पूर्व बयान पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है, जिसमें महिला ने विशेष रूप से कहा था कि आरोपितों ने पैसे की मांग को लेकर विवाद के कारण उसे आग लगा दी। पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए गए मृत्यु पूर्व बयान पर भरोसा नहीं करने के लिए हाई कोर्ट द्वारा दिया गया तर्क उचित नहीं है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के मई, 2020 के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की एक अपील पर फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर अदालत संतुष्ट है कि मृत्यु से पहले दिया गया बयान सही और स्वैच्छिक है तो वह बिना पुष्टि के उसे सजा का आधार बना सकती है। पुलिस के मुताबिक, घटना 20 दिसंबर, 2011 को मथुरा जिले में हुई थी और इसके बाद नौ जनवरी, 2012 को महिला की मौत हो गई थी।
मृत्यु पूर्व दिए बयान के आधार पर हो सकता है दोष सिद्ध:सुप्रीम कोर्ट
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