बागी विधायकों मिली 14 दिन की मोहलत

अगली सुनवाई 11 जुलाई को, सुको ने दिये विधायकों व उनकी फैमिली को सुरक्षा के निर्देश
मुंबई। शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे गुट को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। कोर्ट ने शिंदे गुट के विधायकों को डिप्टी स्पीकर की तरफ से भेजे गए अयोग्यता के नोटिस का जवाब देने के लिए 12 जुलाई तक का समय दे दिया है। इस तरह तब तक विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही रुकी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी 39 विधायकों और उनके परिवार को पर्याप्त सुरक्षा दिए जाने का भी निर्देश दिया है। दरअसल एकनाथ शिंदे और उनके गुट के विधायक भरत गोगावाले ने सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की थीं। याचिकाओं में यह कहा गया था कि शिवसेना के 54 में से 39 विधायकों का समर्थन उनके पास है। इसके बावजूद पार्टी ने विधायक दल का नेता और चीफ व्हिप बदल दिया है. अल्पमत विधायकों के चीफ व्हिप की तरफ से बहुमत के विधायकों को पार्टी के कार्यक्रम में आने का आदेश जारी करवाया जा रहा है. उसे न मानने पर विधानसभा में अयोग्यता की कार्रवाई शुरू करवा दी गई है। शिंदे की याचिका में यह भी कहा गया था कि विधानसभा के डिप्टी स्पीकर को पद से हटाने का प्रस्ताव 21 जून को दे दिया गया था. नियमों के तहत नोटिस को 14 दिन के बाद विधानसभा में रखा जाना चाहिए और नोटिस को 21 विधायकों का समर्थन होने पर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होना चाहिए। विधानसभा के डिप्टी स्पीकर ने अपने लिए विधानसभा में बहुमत का समर्थन हासिल करने की बजाय शिंदे कैंप के विधायकों की अयोग्यता को योग्यता का नोटिस भेज दिया।
डिप्टी स्पीकर के अधिकार पर सवाल
शिवसेना के बागी विधायकों की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने जस्टिस सूर्यकांत और जमशेद पारदीवाला की बेंच के सामने दलीलें रखी। कॉल ने 2016 में आए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के ‘नबाम रेबिया बनाम अरुणाचल विधानसभा उपाध्यक्ष’ मामले के फैसले का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले ने साफ कहा था कि अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के लंबित रहते स्पीकर या डिप्टी स्पीकर को विधायकों की अयोग्यता पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए।
उद्धव गुट ने किया विरोध
सीएम उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, देवदत्त कामत और डिप्टी स्पीकर के लिए पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कौल की दलीलों का जोरदार विरोध किया. सिंघवी का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 212 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विधानसभा की किसी भी कार्रवाई के लंबित रहने के दौरान उसमें दखल नहीं देना चाहिए। लेकिन बेंच के दोनों जज इस दलील से बहुत आश्वस्त नजर नहीं आए। उन्होंने कहा कि नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला उनके सामने रखा गया है। इसके बाद भी अगर उन्होंने मामले में दखल नहीं दिया, तो याचिका का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा।
अज्ञात ईमेल से मिला था नोटिस’
सुनवाई के दौरान डिप्टी स्पीकर के वकील राजीव धवन ने यह स्वीकार किया कि 21 जून को ईमेल के जरिए उन्हें पद से हटाने का प्रस्ताव मिला था. लेकिन अज्ञात ईमेल से यह नोटिस आने के चलते उन्होंने इसे खारिज कर दिया। इस पर बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, “सवाल ये उठता है कि क्या डिप्टी स्पीकर खुद ही अपने केस के जज हो सकते हैं? उन्होंने एक नोटिस को इसलिए खारिज कर दिया कि उन्हें लगा कि यह किसी अज्ञात ईमेल से आया है। अगर ऐसा है तो यह बातें भी विधानसभा के किसी सक्षम अधिकारी को हमें लिखित रूप में देनी चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा, “हम दोनों याचिकाओं पर नोटिस जारी कर रहे हैं। सभी पक्ष इस पर अपना जवाब दाखिल करें।11 जुलाई को मामले में आगे की सुनवाई की जाएगी।
विधायकों को जवाब के लिए मिला समय
कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर के वकील से पूछा कि क्या वह अयोग्यता के नोटिस का जवाब देने के लिए दी गई समय सीमा को बढ़ाएंगे? धवन ने कहा कि वह डिप्टी स्पीकर से निर्देश लिए बिना इस पर कुछ नहीं कह सकते हैं। इसके बाद कोर्ट ने अपनी तरफ से नोटिस का जवाब देने की अवधि को 11 जुलाई शाम 5:30 बजे तक बढ़ा दिया।
सुरक्षा का निर्देश
याचिकाकर्ता पक्ष के वकील नीरज किशन कौल ने सभी विधायकों की सुरक्षा का मसला उठाते हुए कहा, “हमें जान की धमकी दी जा रही है। कहा जा रहा है कि हमारी लाश मुंबई लौटेगी. हमारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। जजों ने इस पर महाराष्ट्र के वकील से सवाल किया। उन्होंने सभी 39 विधायकों और उनके परिवार की सुरक्षा के तत्काल और पर्याप्त इंतजाम का भरोसा दिया। जजों ने अपने आदेश में इसे नोट कर लिया।
फ्लोर टेस्ट पर रोक नहीं
सुनवाई के अंत में शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु के लिए पेश वकील देवदत्त कामत ने यह मांग की कि सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई तक राज्य में किसी भी तरह के फ्लोर टेस्ट पर रोक लगा दे। लेकिन कोर्ट ने इससे मना करते हुए कहा कि वह पूर्वानुमान पर आदेश नहीं दे सकता. जजों ने कहा कि कोर्ट के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं। अगर जरूरत हो तो कोई भी पक्ष सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है।

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