बाईक पर दादा का शव ले कर निकला पोता
फिर नाकाम हुई सरकार की व्यवस्था, शहडोल में शर्मसार करने वाली घटना पर प्रशासन मौन
बांधवभूमि, सोनू खान
शहडोल। सरकारी घोषणाओं और दावों मे भले ही जनता को स्वास्थ्य से लेकर जीवन-यापन की हर सुविधा मुहैया हो, पर घटनायें इन योजनाओं को केवल कागजी ही साबित कर रही हैं। संभागीय मुख्यालय मे सोमवार को हुकूमत की कथनी और करनी के अंतर को उजागर करने वाला ऐसा ही एक और मंजर दिखाई दिया। जब एक व्यवस्था न होने के कारण एक पोते को अपने दादा का शव मोटरसाईकिल पर ले जाने के लिये मजबूर होना पड़ा। दरअसल रविवार की सुबह ललुईया बैगा 56 निवासी धुरवार की मौत जिला अस्पताल मे हो गई। घर के वरिष्ठ सदस्य की मृत्यु से परेशान परिजन काफी देर तक अस्पताल प्रबंधन से शव को घर तक पहुंचवाने की गुहार लगाते रहे। जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो पोते ने बाईक पर ही शव को ले जाने का निर्णय लिया।
बाईक पर बैठा मृत व्यक्ति
जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर बाईक पर ले जाये जा रहे शव को जिसने भी देखा, हैरान रह गया। क्योंकि मृतक का शव भी जीवित व्यक्ति की तरह बैठाया गया, उसे संभालने के लिये चालक समेत 3 लोग सवार थे। इस दृश्य ने न सिर्फ एक बार फिर गरीबी के सांथ मानवता को भी शर्मसार किया बल्कि पूरी व्यवस्था को ही कटघरे मे खड़ा कर दिया है। प्रश्न उठता है कि सरकार के कार्यक्रम और योजनायें जरूरत के समय कहां चली जाती है। सांथ ही अधिकारियों को हर महीने लाखों रूपये की तनख्वाह किस लिये दी जाती है। क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है।
इलाज के आभाव मे छोड़े प्राण
पारिवारिक सदस्यों ने बताया कि ललुईया को ब्लड प्रेशर की शिकायत के बाद जिला अस्पताल के मेडिकल वार्ड मे भर्ती किया गया था। नाजुक हालत के बावजूद घंटों तक अस्पताल का कोई डाक्टर उसे देखने नहीं आया। जिससे मरीज की तबियत बिगड़ती चली गई और अंतत: उसकी मृत्यु हो गई। मौत के बाद जब परिजनों ने जिला अस्पताल प्रबंधन से शव वाहन की मांग की तो कहा गया कि रविवार की छुट्टी है, इसलिये वाहन की व्यवस्था नहीं हो सकती। जिसके बाद मजबूरन उन्हे शव को बाइक पर ही ले जाना पड़ा।
हटाये गये हेल्प डेस्क के कर्मचारी
बताया जाता है कि अंदर से बाहर तक स्वास्थ्य सुविधाओं के साईन बोर्ड और पोस्टरों से पटे जिला अस्पताल के हेल्प डेस्क पर महीने भर से कोई कर्मचारी तैनात नहीं है। लिहाजा मरीज व परिजनों को किसी तरह की मदद व जानकारी नहीं मिल पाती है। यदि यह सुविधा एक्टिव होती तो ललुईया के परिजनो को कोई सहायता मिल सकती थी। सूत्रों ने बताया कि पिछले एक महीने से सिविल सर्जन द्वारा हेल्प डेस्क मे पदस्थ कर्मचारियों को हटा दिया गया है। बहरहाल सोशल मीडिया पर इस घटना के वायरल होने के बाद अस्पताल के अधिकारी अब खींसें निपोर कर मामले को लीपने मे जुट गये हैं।