बांधवगढ़ मे बह रही भ्रष्टाचार की ‘चरण’ गंगा

बांधवगढ़ मे बह रही भ्रष्टाचार की ‘चरण’ गंगा
विश्व प्रसिद्ध उद्यान को लगा लालची हाकिमो का घुन, खतरे मे दुर्लभ जीव और संपदा
बांधवभूमि न्यूज, उमरिया
अपने घने हरे जंगलों, नैसर्गिक सुंदरता और दुर्लभ वन्यजीवों के कारण बांधवगढ़ नेशनल पार्क नकेवल इस जिले, देश बल्कि पूरे विश्व की सर्वोत्तम प्राकृतिक धरोहरों मे एक है। जहां पहुंच कर व्यक्ति को साक्षात स्वर्ग की अनुभूति होती है। पार्क की बेहतर व्यवस्था, अतिथि सत्कार और जंगलों मे टाईगर, तेंदुआ, चीतल जैसे अमूल्य जंगली जीवों की सुलभता दुनिया भर के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है। एक समय था जब भ्रमण के बाद पर्यटक बांधवगढ़ की मीठी यादों को दिल मे संजोये खुशी-खुशी यहां से विदा होते थे, पर अब हालात बदल गये हैं। पार्क मे फैली अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और अधिकारियों की मनमानी ने कुछ वर्षो मे ही दशकों की बनी-बनाई साख को चौपट कर दिया है। नेशनल पार्क का जो नजारा अब दिखाई देता है, उसकी परिकल्पना शायद ही किसी ने की होगी। आये दिन बाघों तथा अन्य जीवों की मौत, आग से खाक होते बेशकीमती जंगल और आसपास के बाशिंदों के सांथ अनावश्यक विवाद यहां के माहौल को लगातार खराब कर रहा है। इसका कारण उद्यान मे जमे वे नाकारा अधिकारी हैं, जिनका मकसद सरकारी पैसे की बंदरबांट और अपनी नाकामियों पर पर्दा डाल कर निर्दोषों को परेशान करना है।
गंदगी और टूटी-फूटी सड़कें
तीन महीने बाद गत 1 अक्टूबर को बांधवगढ़ का कोर जोन पर्यटन के लिये खोला जा चुका है, लेकिन व्यवस्थायें बद से बदतर हैं। पर्यटन का ऊबड़-खाबड़ रास्ता, गड्ढे और गंदगी अधिकारियों के तीन महीने की मेहनत और पार्क के प्रति उनकी निष्ठा की कहानी बयां कर रही है। यही हाल बफर जोन का भी बताया जाता है। सूत्रों के मुताबिक प्रबंधन नये सत्र की तैयारी और सड़कों की मरम्मत के नाम पर लाखों रूपये खर्च कर डालता है, पर सारा काम सिर्फ कागजों पर ही होता है। सवाल उठता है कि यदि ऐसी स्थिति मे विदेशी पर्यटक आते और उनका सामना कोर जोन मे पसरे पालतू जानवरों, गंदगी और बदहाल सड़कों से होता तो वे भारत के प्रति कैसी छवि लेकर जाते।
तो खत्म हो जायेंगे दुर्लभ जीव
विगत दो वर्षो का हिसाब देखा जाय तो बांधवगढ़ के करीब दो दर्जन से ज्यादा बाघ और तेंदुए काल-कवलित हुए हैं। इनमे से कई करंट तो कई की डूब कर मौत होना बताई गई है। इसके अलावा कई बाघ आज भी लापता हैं। ऐसी स्थिति मे असलियत का पता लगाने की बजाय अधिकारी सरकारी बंगलों मे मुफ्त की रोटी तोडऩे के अलावा कोई काम नहीं करते। जानवरों के मरने के बाद उनका रटा-रटाया जवाब आता है कि यह मौत टेरीटोरी फाईट का नतीजा है। जबकि असलियत यह है कि अधिकांश बाघ और तेदुए शिकारियों के हत्थे चढ़ कर अपनी जान गवां रहे हैं।
बेकसूरों पर जुल्म की इंतहां
एक ओर सरकार का मानना है कि टाईगर रिजर्व के वन और वन्यजीवों की सुरक्षा आसपास के ग्रामीणों से मेलजोल और सहभागिता के बिना संभव नहीं है तो दूसरी ओर प्रबंधन उन्हीे के सांथ बदसलूकी और शोषण की नीति अपनाये हुए है। वन्यजीवों से फसलों का नुकसान हो या उनके पालतू पशुओं की हत्या का मामला। प्रबंधन से उचित मुआवजा तो दूर सम्मानजनक व्यवहार तक नहीं मिलता। कई बार तो अधिकारी बेकसूर लोगों को शिकार के झूठे मामलों मे फंसा कर परेशानी मे डाल देते हैं। वहीं ईको विकास समितियों मे भी क्षेत्र के शातिर लोगों का कब्जा है, जो अफसरों की चापलूस कर अपनी जेबें भरने मे लगे हुए हैं। यही कारण है कि जंगल और जीवों के संरक्षण मे स्थानीय लोगों का सहयोग नगण्य है।

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