ताला मे चल रहा था इलाज, बांधवगढ़ मे नहीं थम रहा मौतों का सिलसिला
मानपुर/रामाभिलाष त्रिपाठी। जिले के बांधवगढ़ नेशनल पार्क मे बाघों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। बुधवार की रात दमना-बनबेई क्षेत्र मे अपना ठिकाना बना कर रहने वाली एक और बाघिन चल बसी। इस बाघिन का ताला मे उपचार चल रहा था। बताया गया है कि चार साल उम्र की बनबेई बाघिन एक हफ्ता पहले तक बिल्कुल स्वस्थ्य थी। इस दौरान उसने एक किल भी किया था परंतु दो-दिन पूर्व सुस्त दिखने के बाद उसे ताला लाया गया। तबियत मे सुधार न आते देख प्रबंधन द्वारा अनुमति लेकर बाघिन को पिंजरे मे रख कर मल्टी विटामिन ड्रिप लगाई गई। इससे वह थोड़ी चेतन्न भी हुई परंतु एकाएक रात करीब 8.10 बजे बाघिन की मृत्यु हो गई। बाघिन के इलाज की देखरेख डाक्टरों व विभागीय अधिकारियों की टीम के सांथ क्षेत्र संचालक विंसेन्ट रहीम स्वयं कर रहे थे। उनकी मौजूदगी मे ही बाघिन ने अंतिम सांस ली। गुरूवार को सुबह पीएम आदि कार्यवाही के उपरांत शव को जला कर नष्ट किया गया।
मादा की मौत, दोहरा नुकसान
पार्क मे पिछले कुछ दिनो से दुर्लभ बाघों और तेदुओं की हो रही मौत ने जिले के वन्यजीव प्रेमियों को चिंता मे डाल दिया है। इससे भी ज्यादा दुखद मादा जानवरों का मरना है। जानकारों के अनुसार मादा बाघ और तेंदुए जंगल मे वंशवृद्धि मे सहायक होते हैं। मार्च और अप्रेल के महीने मे उद्यान मे मारे गये जानवरों मे अधिकांश मादा हैं। ऐसे मे यह दोहरा नुकसान है, जिसका खामियाजा पार्क को लंबे समय तक भुगतना होगा।
इस तरह मारे गये दुर्लभ पशु
मार्च और अप्रेल का महीना उद्यान के लिये खासा नुकसानदायक साबित हुआ है। इस दौरान जहां आग से जंगलों को काफी नुकसान हुआ वहीं नियमित रूप से बाघ और तेंदुए बिछड़ते रहे। मार्च की 30 तारीख को बाघ की मौत से शुरू हुआ सिलसिला आज भी जारी है। 12 मार्च को गोबरा ताल बीट के पास जनाड़ नदी मे 10 साल के बाघ का शव पाया गया था। कल की घटना को मिला कर कुल तीन बाघों की मौत हुई जबकि तीन तेंदुए भी काल कवलित हुए हैं।
बनबेई बाघिन भी चल बसी
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