प्रशासन की मदद के बाद भी हुई बच्चे की मौत, मां ने लगाई याचिका

प्रशासन की मदद के बाद भी हुई बच्चे की मौत, मां ने लगाई याचिका
मांगा 20 लाख का मुआवजा
हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस
कुपोषण से मौत का दावा
उमरिया। जिले के ग्राम कोहका निवासी एक बच्चे की मौत के मामले मे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। इस मामले मे स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव और कलेक्टर के अलावा सीएमएचओ उमरिया, जिला महिला बाल विकास अधिकारी, सचिव नेशनल हेल्थ मिशन तथा मेडिकल कॉलेज जबलपुर के डीन को भी नोटिस जारी किया गया है। दरअसल आदिवासी महिला रामंती बैगा के बच्चे को बेहद कमजोर होने के कारण जिला अस्पताल के पुनर्वास केन्द्र मे भर्ती कराया गया था। वहां तीन दिन तक देखरेख व इलाज के बाद भी जब कोई फायदा नहीं हुआ तो बच्चे को मेडिकल कॉलेज जबलपुर रिफर किया गया, जहां उसकी मौत हो गई। इस मामले मे महिला द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत की गई थी। जिसमे कहा गया है कि उसके बच्चे की मौत कुपोषण के कारण हुई है।
उपेक्षा से बिगड़े हालात
याचिकाकर्ता रामंती बैगा 34 का कहना है कि राज्य सरकार की उपेक्षा के कारण यहां के बच्चों मे कुपोषण की समस्या गंभीर हो चली है। जो कि अब विकराल रूप लेती जा रही है। शासन की नीतियां महज कागजों तक सीमित हैं। इसी वजह से उसे अपने 9 मांह के बच्चे को खोना पड़ा है। जिसकी एवज मे उसे 20 लाख रूपये बतौर मुआवजा दिलाया जाय। व्यापक हित लाई गई इस याचिका मे महिला ने मांग की है कि प्रदेश मे जिला स्तरीय समितियां गठित की जांय जो योजनाओं की मॉनिटरिंग करें। मिड डे मील सभी शासकीय तथा अनुदान प्राप्त स्कूलों मे पहुंचाया जाय। ड्राई राशन की जगह पका हुआ कैलोरी और विटामिनयुक्त भोजन मुहैया कराया जाय।
कुपोषण से नहीं हुई मौत
इस मामले मे जब संबंधित अधिकारियों से चर्चा की गई तो उन्होने बच्चे की मौत कुपोषण से होने की बात को सिरे से ही खारिज कर दिया। बताया गया कि रामंती बैगा के 9 मांह के शिशु की मौत कुपोषण से नहीं बल्कि मल्टीपल डिसीज के कारण हुई थी। यह बात मेडिकल कॉलेज और उसकी पीएम रिपोर्ट मे भी आ चुकी है। उनके मुताबिक यह रोग अधिकांशत: समय पर मानसिक और शारीरिक विकास न होने वाले बच्चों मे होता है।
कलेक्टर ने दिलाई आर्थिक मदद
बताया गया है कि बच्चे को दो बार एनआरसी मे भर्ती कराया गया था। इस दौरान कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव द्वारा पोषण आहार तथा अन्य दवाईयों के लिये दो बार 5-5 हजार रूपये रेडक्रास से दिलाये गये। इसके बाद भी जब स्थिति मे कोई सुधार नहीं हुआ तो उसे मेडिकल कॉलेज जबलपुर रिफर किया गया था।
कलंक से नही छूट रहा पीछा
अधिकारियों के दावों और रामंती के आरोपों पर सुनवाई अब हाईकोर्ट मे होनी है, लेकिन इतना तो तय है कि लंबे समय से कुपोषण जिले की एक भीषण समस्या और एक शर्मिन्दगी का सबब बनी हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले मे अभी भी डेढ़ हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं, जिनमे से करीब 200 गंभीर स्थिति मे हैं। सवाल उठता है कि सरकार द्वारा कराड़ों रूपये खर्च किये जाने के बाद भी कुपोषण से आखिर पीछा क्यों नहीं छूट रहा है। यह भी कहा जाता है कि शासकीय बजट बच्चों से ज्यादा जिले के अधिकारियों के पोषण मे काम आ रहा है और नौनिहाल वहीं के वहीं हैं।

 

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