प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शहडोल आगमन आज

राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन का करेंगे शुभारंभ

शहडोल । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को फिर से मप्र के दौरे पर आ रहे हैं। पीएम मोदी शनिवार को शहडोल आएंगे। जहां सीएम शिवराज सिंह चौहान उनका स्वागत करेंगे। पीएम मोदी शहडोल में रानी दुर्गावती गौरव यात्रा का समापन करेंगे। इस दौरान वह पकरिया गांव भी जाएंगे। पीएम मोदी के आगमन को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दौरान वह राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन अभियान का शुभारंभ भी करेंगे साथ ही आयुष्मान हितग्राहियों को पीवीसी कार्ड का वितरण करेंगे। ऐसे में पीएम मोदी का आगमन को लेकर तैयारियां पूरी हो गई हैं।
पांच दिन में दूसरा दौरा
पीएम मोदी पकरिया गांव में फुटबॉल खिलाडिय़ों, पेसा एक्ट के लाभान्वितों और स्वयं सहायता समूह की दीदियों और प्रतिनिधियों के प्रमुखों के साथ संवाद भी करेंगे। जबकि वह आदिवासी परिवार के साथ भोजन भी करेंगे। बता दें कि इससे पहले पीएम मोदी 27 जून को ही शहडोल आने वाले थे। लेकिन भारी बारिश की वजह से उनका दौरा स्थगित हो गया था। जिसके बाद वह कल आएंगे। बता दें कि पांच दिनों के अंदर पीएम मोदी दूसरी बार मध्य प्रदेश आ रहे हैं।पीएम शहडोल के पकरिया गांव पहुंचेंगे जहां वह आदिवासी परिवार के घर जाकर भोजन करेंगे। जिसके लिए पार्टी ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। गांव में भी पीएम के आगमन को लेकर ग्रामीणों में उत्साह नजर आ रहा है। पीएम के दौरे को लेकर यहां पहले से ही तैयारियां शुरू हो गई थी।
पीएम को परोसा जाएगा आदिवासी भोजन
पीएम के भोजन के लिए जो मेन्यू तैयार किया है। उसमें सबकुछ आदिवासी परपंरा के हिसाब से बनाया जाएगा। पीएम मोदी को जो खाना खिलाया जाएगा उसमें ये सभी व्यंजन शामिल होंगे।पकरिया गाँव के जनजाति समुदाय के भोजन में कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, साँवा, मक्का, चना, पिसी, चावल आदि अनाज शामिल है। महुए का उपयोग खाद्य और मदिरा के लिये किया जाता है। आजीविका के लिये प्रमुख वनोपज के रूप में भी इसका संग्रहण सभी जनजातियाँ करती हैं। बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के लोगों को वनौषधियों का परंपरागत रूप से विशेष ज्ञान है। बैगा कुछ वर्ष पूर्व तक बेवर खेती करते रहे हैं।

अलहदा है कि पकरिया की जनजातियों का खानपान और रीति-रिवाज

ढोल, माँदर, गुदुम, टिमकी, डहकी, माटी माँदर, थाली, घंटी, कुंडी, ठिसकी, चुटकुलों की ताल पर बाँसुरी, फेफरिया और शहनाई की स्वर-लहरियों के साथ भील, गोंड, कोल, कोरकू, बैगा, सहरिया, भारिया आदि जनजातीय युवक-युवतियों की तरह बघेलखंड-शिखर थिरक उठते हैं। जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की इन्हीं लीला-मुद्राओं का अनुकरण है।
पकरिया गाँव का जनजातीय समुदाय अद्भुत एवं अद्वितीय इसलिए भी है कि यहाँ के जनजातियों के रीति-रिवाज, खानपान, जीवन शैली सबसे अलहदा है‌‌। जनजातीय समुदाय प्राय: प्रकृति के सान्निध्य में रहते हैं। इसलिये निसर्ग की लय, ताल और राग-विराग उनके शरीर में रक्त के साथ संचरित होते हैं। वृक्षों का झूमना और कीट-पतंगों का स्वाभाविक नर्तन जनजातियों को नृत्य के लिये प्रेरित करते हैं। हवा की सरसराहट, मेघों का गर्जन, बिजली की कौंध, वर्षा की साँगीतिक टिप-टिप,पक्षियों की लयबद्ध उड़ान ये सब नृत्य-संगीत के उत्प्रेरक तत्व हैं।कहा जा सकता है कि नृत्य और संगीत मनुष्य की सबसे कोमल अनुभूतियों की कलात्मक प्रस्तुति है। जनजातियों के देवार्चन के रूप में आस्था की परम अभिव्यक्ति की प्रतीक भी। नृत्य-संगीत, जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग है। यह दिन भर के श्रम की थकान को आनंद में संतरित करने का उनका एक नियमित विधान भी है।

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