शिक्षाविदों को रास नहीं आ रहे बदलाव, छात्रों के कमजोर होने की आशंका
भारत मे नयी शिक्षा नीति 2020 को कैबिनेट की मंज़ूरी मिल गई है। जिसमे कई बदलाव किये गये हैं। इनमे कई पहलुओं का समर्थन और कई का विरोध हो रहा है। कहा जाता है कि देश मे पहली शिक्षा नीति पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1968 मे लागू की थी। स्व. राजीव गांधी की सरकार ने 1986 मे दूसरी शिक्षा नीति बनायी, जिसमें नरसिम्हा राव सरकार ने 1992 मे कुछ बदलाव किये थे।
उमरिया। जिले के शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों को केन्द्र सरकार की नई शिक्षा नीति रास नहीं आ रही है। उनका कहना है कि भारत ने अमेरिका सहित दुनिया भर को असंख्य नामी-गिरामी डाक्टर और इंजीनियर दिये हैं, जो वर्तमान शिक्षा और परिवेश की उपज हैं। सरकार द्वारा बिना सोचे-समझे और मशविरा किये मनमाने तरीके से लागू की गई नीति छात्रों के मूल आधार को ही कमजोर कर देगी। जिससे वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का सामना ही नहीं कर पायेंगे। जिस बात का सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है, वह है ऑनलाईन परीक्षा। कोरोना काल मे स्कूल लगी नहीं है और सरकार ऑनलाईन परीक्षा कराने वाली है। अब तक 100 नंबर का जो पेपर परीक्षा केन्द्रों मे जाकर देना होता था, उसमे से 70 नंबर का पेपर ऑनलाईन कराने की तैयारी हो रही है इसके लिये सभी छात्रों का वाट्सएप नंबर कलेक्ट किया जा रहा है, जिसके माध्यम से छात्रों को पेपर भेजा जायेगा। परीक्षा कॉपी लिखने के बाद परीक्षार्थी कॉपी स्कूल मे जमा करेंगे। शेष 30 नंबर का पेपर स्कूल मे देने की व्यवस्था की जा रही है। जानकारों का मानना है कि यह प्रक्रिया दूषित है, जिससे शिक्षा का स्तर नीचे गिरना तय है।
स्वायत्तता की बात छलावा
कुछ शिक्षक संघ बोर्ड ऑफ गवर्नर सिस्टम का विरोध कर रहे हंै। उनका कहना है कि सरकार स्वायत्तता के नाम पर उच्च शिक्षण संस्थानों पर अपना शिकंजा कसना चाहती है। जिसे अभी बहुत कम लोग समझ पा रहे हैं। सरकार बोर्ड ऑफ गवर्नर के जरिये उच्च शिक्षण संस्थानों मे फ ीस के निर्धारण, अध्यापकों के वेतन, नियुक्तियों, पाठ्यक्रमों और अन्य अकादमिक कार्यक्रमों मे अपना नियंत्रण चाहती है। स्वायत्तता की बात छलावा और धोखा है।
इन सवालों पर मौन
जानकारों का मानना है कि नई नीति मे स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक हर जगह प्राइवेट कॉलेजों के दबदबे पर कैसे नियंत्रण होगा। सरकारी शिक्षा को बचाने के लिए क्या कदम उठाये जायेंगे। सभी वर्गों को एक समान शिक्षा, खासकर उच्च शिक्षा कैसे मिल सकेगी, इन सवालों पर मौन साध लिया गया है। कुल मिला कर नई शिक्षा नीति मे कुछ आश्वासन, कुछ आशायें और कुछ आशंकायें हैं। इसके अलावा आरटीई का विस्तार कैसे और किस दिशा मे किया जाएगा इसका अभाव दिखता है।
ये हुए बदलाव
नई शिक्षा नीति मे सरकार ने जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात कही है, जो अब तक करीब 4 प्रतिशत था। इसके अलावा फीस का निर्धारण और उस पर अंकुश लगाना, पूरे देश मे एक प्रवेश परीक्षा आयोजित कराना, शिक्षा की गुणवत्ता मे बढ़ावा देने के लिए शिक्षामित्र, एडहॉक, गेस्ट टीचर जैसे पद धीरे-धीरे समाप्त करना, स्कूली और उच्च शिक्षा दोनो मे नियमित और स्थायी अध्यापकों की नियुक्ति, शिक्षा का अधिकार जो पहले 6 से 14 साल था उसे 3 से 18 साल करने सहित कई बदलाव किये गये हैं।