नीम हकीम खतरा ए जान

नीम हकीम खतरा ए जान

झोला छाप के इलाज से बिगड़ी हालत, सरकारी डाक्टर भी रहे नदारत

बांधवभूमि, रामाभिलाष त्रिपाठी
मानपुर। नीम हकीम खतरा ए जान की कहावत हमेशा से चरितार्थ होती चली आई है। इसका मतलब है कि आधा अधूरा ज्ञान रखने वाले हकीम से जान का खतरा बना रहता है। हलांकि इसमे मरीजों की भी मजबूरी है। लचर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते लोगों को मजबूरन झोला छाप डाक्टरों की शरण मे जाना पड़ता है। ऐसा ही एक वाकया जनपद मुख्यालय मानपुर से लगे शहडोल जिले के ग्राम पसौड़ मे सामने आया है, जहां एक व्यक्ति की मौत सही इलाज न मिलने से हो गई। जानकारी के अनुसार गांव के राधे चौधरी की तबियत गत दिवस खराब हो गई। जिसके बाद वे मसीरा मे अशोक चतुर्वेदी के यहां पहुंचे। जिन्होने मरीज को चार-पांच इंजेक्शन लगा दिये। आराम नहीं मिलने पर राधे पुन: डॉ. चतुर्वेदी के यहां पहुंचे जिस पर उनके द्वारा कुछ और दवाइयां दी गई। जब हालत ज्यादा खराब हो गई तो उन्होने हांथ खड़े कर दिये।

आधा घंटा पड़ा भारी
जिसके बाद आनन-फानन मे राधे चौधरी को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मानपुर लाया गया। यहां पर भी सरकारी डाक्टर नदारत मिले। नर्सो केे फोन घनघनाने के बाद जाकर बड़ी मुश्किल से आधा घंटा बाद जाकर डाक्टर आये, तब तक राधे चौधरी की मृत्यु हो चुकी थी। पहले झोला छाप की लापरवाही और फिर सरकारी डाक्टर की लेटलतीफी ने एक और बेकसूर की जान ले ली। मृतक के पुत्र का कहना है कि यदि मानपुर मे समय पर डाक्टर देख लेते तो उनके पिता की जान बच सकती थी।

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