राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया न्यायिक अकादमी के डायरेक्टर्स रिट्रीट का शुभारंभ
भोपाल। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमें देश के लोगों को शीघ्र, सुलभ व किफायती न्याय उपलब्ध कराने के प्रयास करना होगा। इसके लिये लोगों को उनकी अपनी बोली और भाषा में न्याय दिलाने की दिशा में कार्य करना होगा। राष्ट्रपति श्री कोविंद आज शनिवार को जबलपुर के मानस भवन में आयोजित ऑल इंडिया ज्यूडीशियल एकेडमीज डॉयरेक्टर्स रिट्रीट के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम में राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल, भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना, श्री अशोक भूषण, हेमन्त गुप्ता, श्रीपति रविन्द्र भट्ट, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री मोहम्मद रफीक और प्रशासनिक न्यायाधीश श्री प्रकाश श्रीवास्तव मंचासीन थे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि निचली अदालतें देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है। इनमें प्रवेश से पहले, सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले विधि छात्रों को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियाँ कर रही हैं। अब जरूरत है कि देश की अदालतों, विशेष रूप से जिला अदालतों, में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने के लिए न्यायाधीशों के साथ ही अन्य न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाया जाए। राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूँ कि मुझे राज्य के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से जुड़कर देश की सेवा करने का अवसर मिला। मुझे खुशी है कि मेरे सुझाव पर सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कार्य करते हुए अपने निर्णयों का अनुवाद, नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। इस प्रयास से जुड़े सभी लोग बधाई के पात्र हैं।
राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि सभी उच्च न्यायालय, अपने-अपने प्रदेश की अधिकृत भाषा में, जन-जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों से जुड़े निर्णयों का प्रमाणित अनुवाद, सुप्रीम कोर्ट की भाँति उपलब्ध और प्रकाशित कराएँ, जिससे भाषायी सीमाओं के कारण वादी-प्रतिवादियों को निर्णय समझने में असुविधा न हो। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान की उद्देशिका को हमारे संविधान की आत्मा समझा जाता है। इसमें चार आदर्शों – न्याय, स्वतंत्रता, अवसर की समानता और बंधुता की प्राप्ति कराने का संकल्प व्यक्त किया गया है। इनमें भी ‘न्याय’ का उल्लेख सबसे पहले है।
राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि देश में 18 हजार से ज्यादा न्यायालयों का कप्यूटरीकरण हो चुका है। लॉकडाउन की अवधि में जनवरी 2021 तक पूरे देश में लगभग 76 लाख मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्टस में की गई। साथ ही नेशनल ज्यूडीशियल डेटा ग्रिड, यूनिक आइडेंटिफिकेशन कोड तथा क्यू.आर. कोड जैसे प्रयासों की सराहना विश्व-स्तर पर की जा रही है। अब ई-अदालत, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-प्रोसीडिंग्स, ई-फाइलिंग और ई-सेवा केन्द्रों की सहायता से जहाँ न्याय-प्रशासन की सुगमता बढ़ी है, वहीं कागज के प्रयोग में कमी आने से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण संभव हुआ है। राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि मध्यप्रदेश सहित पश्चिमी भारत की जीवन रेखा और जबलपुर को विशेष पहचान देने वाली पुण्य-सलिला नर्मदा की पावन धरती पर आप सबके बीच आकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। जाबालि ऋषि की तपस्थली और रानी दुर्गावती की वीरता के साक्षी जबलपुर क्षेत्र को भेड़ाघाट और धुआंधार की प्राकृतिक संपदा तथा ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक धरोहर प्राप्त है। शिक्षा, संगीत एवं कला को संरक्षण और सम्मान देने वाले जबलपुर को आचार्य विनोबा भावे ने ‘संस्कारधानी’ कहकर सम्मान दिया और वर्ष 1956 में स्थापित, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायपीठ ने जबलपुर को विशेष पहचान दी। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम, देश की सभी राज्य न्यायिक अकादमियों के बीच, सतत न्यायिक प्रशिक्षण के लिए अपनायी जाने वाली प्रक्रिया को साझा करने का सराहनीय प्रयास है। इसलिए, राज्य न्यायिक अकादमियों के निदेशकों के इस अखिल भारतीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए मुझे हर्ष का अनुभव हो रहा है।
राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने कहा कि न्यायपालिका देश की सबसे मूल्यवान संस्था है। प्रत्येक भारतीय को न्यायपालिका पर गर्व है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 की वैश्विक महामारी के संकट की घड़ी में भी न्यायपालिका ने न्यायदान को बाधित नहीं होने दिया। न्यायपालिका का यह कार्य प्रशंसनीय है। श्रीमती पटेल ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता और कौशल विकास के लिये प्रशिक्षण का महत्व सर्वज्ञात है। उन्होंने कहा कि शीघ्र न्याय की चुनौतियों से निपटने के लिये अकादमियों के प्रशिक्षुओं को तकनीक के बेहतरीन उपयोग के लिये प्रेरित करना चाहिए। साथ ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मानव विवेक के बीच तालमेल के साथ कार्य की क्षमता विकसित करने और बदलते समय की चुनौतियाँ डाटा सुरक्षा, सायबर अपराध आदि से निपटने के लिये तैयार करने और नवाचारों के लिये भी प्रशिक्षुओं को प्रेरित किया जाना चाहिये।
राज्यपाल ने कहा कि किसी भी समाज में यदि नारी की स्थिति सुदृढ़ व सम्मान जनक है, तो समाज भी सुदृढ़ और मजबूत होगा। लंबे समय के बाद नारियों ने समाज में कुछ जगह बनाई है, महिलाओं की स्थिति में बदलाव आ रहा है। यह सकारात्मक है, लेकिन हमें इसकी गति बढ़ानी होगी। अकादमियों द्वारा प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षुओं को लिंग संवेदीकरण के विषय में प्रशिक्षित करने के प्रयासों पर भी बल दिया जाए।
राज्यपाल श्रीमती पटेल ने कहा कि गुजरात में महिला एवं बाल विकास विभाग में मंत्री की हैसियत से मैंने महिलाओं के समूह के माध्यम से पारिवारिक विवादों के समाधान की पहल की थी। इसके तहत नारी अदालत के रूप में 8-10 महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें अधिकारों की जानकारी देने की व्यवस्था की गई थी। ये महिलाएँ घरेलू हिंसा के मामले में पीड़ितों और परिवार के सदस्यों के साथ चर्चा और आवश्यक जानकारियों को एकत्र कर विवादों का समाधान कराती थीं। महिला को कोर्ट-कचहरी नहीं जाना पड़े, इसलिये मैंने गणमान्य नागरिकों की समिति बनाकर उनके सहयोग से मामलों का निपटारा कराया। यह प्रयोग इतना कारगर रहा कि माह में दो बार नारी अदालतें बैठने लगीं, समस्याग्रस्त महिलायें स्वयं यहाँ आने लगीं। अत: यह जरूरी है कि यौन हिंसा के मामले में महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील, संतुलित और सशक्त दृष्टिकोण के साथ न्याय प्रक्रिया संचालित हो।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने कहा कि आज का कार्यक्रम एक नई प्रक्रिया का आरंभ है। संवाद, नए आयाम स्थापित करता है एवं आज हम इसी प्रकार के संवाद का प्रारंभ कर रहे हैं। न्याय एक अनोखी प्रक्रिया है, न्यायदान के लिये मानव स्वभाव, सामाजिक परिवेश, राजनीतिक व्यवस्था को समझना जरूरी है। साथ ही समय के साथ विकसित होते कानून को भी समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कालांतर में न्यायिक अकादमी स्थापित हुई, जो उत्तम कार्य कर रही है पर न्यायिक प्रशिक्षण के तौर-तरीकों को बदलना होगा। मेरे विचार में ऑल इंडिया ज्यूडीशियल एकेडमी डायरेक्टर रिट्रीट से एक संवाद स्थापित होगा ताकि अनुभव के आदान-प्रदान से हम उत्कृष्टता पा सके।
तीन पुस्तकों का विमोचन
कार्यक्रम के दौरान न्यायिक क्षेत्र की तीन पुस्तकों का विमोचन कर पुस्तकों की प्रथम प्रति राष्ट्रपति श्री कोविंद को भेंट की गई। इन पुस्तकों में ‘भारत के न्यायालय:अतीत से वर्तमान तक’ का विमोचन सु्प्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री बोबड़े ने, ‘मध्यप्रदेश का न्यायिक इतिहास एवं न्यायालय’ का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एन.वी. रमन्ना और ‘मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के वर्ष 1950 से आज तक के डायजेस्ट’ का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण ने किया।