टमाटर हुआ सुर्ख, मिर्च भी तीखी

मंहगाई ने बिगाड़ा रसोई का स्वाद, गरीब और मध्यम वर्ग परेशान
बांधवभूमि, उमरिया
कम होती कमाई और बढ़ती मंहगाई से परेशान जनता पर अब सब्जियों की कीमतों ने कहर बरपा दिया है। आलम यह है कि दाल का तडक़ा दाल से भी ज्यादा मंहगा पड़ रहा है, क्योंकि इसमे पडऩे वाली हर चीज इन दिनो आसमान पर हैं। जिले मे मंगलवार को टमाटर 120 से 150 रूपये प्रति किलो तक बिका। जबकि मिर्च 40 रूपये पाव और औसत दर्जे का नीबू 5 रूपये नग के हिसाब मे रहा। बारिश के कारण हरी सब्जियों की आवक मे कमी होने से अधिकांश परिवार लौकी, भिंडी, बरबटी, परवल, आलू, बैंगन आदि का उपयोग करते हैं। इन सभी मे टमाटर, मिर्च, धनिया आदि की जरूरत पड़ती है, बगैर इनके रसोई मे स्वाद नहीं आता। सूत्रों के मुताबिक बीते रविवार को टमाटर के दाम 180 रूपये किलो पर जा पहुंचे थे, दो दिनो से इसमे नरमी देखी जा रही है। कुल मिला कर तरकारी की बेतहाशा कीमतों ने आम आदमी, विशेष कर गरीब और मध्यम वर्ग के लिये भोजन के विकल्प भी सीमित कर दिये हैं।
बेडौल अदरक
चाय के अलावा गरम मसालों वाली सब्जियों के लिये अदरक अनिवार्य चीज है, जो महीनो से बेडौल हुई पड़ी है। इसके दाम पिछले तीन महीनो से कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। वर्तमान मे इसकी कीमत 200 रूपये किलो है। मंडी के कारोबारी बताते हैं कि अब कोई भी ग्रांहक किलो मे अदरक की खरीद नहीं कर रहा।
आधी रह गई ग्रांहकी
मंहगाई का असर सब्जियों के कारोबार पर भी पड़ा है। खुदरा कारोबारी बताते हैं, इन दिनो कई लोगों ने टमाटर, हरा धनिया और अदरक जैसी रोजाना काम आने वाली सब्जियों को खरीदना ही बंद कर दिया है। ऐसे मे उनकी ग्रांहकी तो आधी है, जबकि लागत दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। एक समय थोक मण्डी से 5 हजार रूपये की खरीदी से पूरी रेहड़ी भर जाती थी, पर अब उतने ही माल पर 20 हजार रूपये फंसाने पड़ रहे हैं। जानकारों का मानना है कि टमाटर के दामो मे फिलहाल कोई राहत मिलने वाली नहीं है। लगभग एक मांह के बाद जब दक्षिण के राज्यों मे नई फसल उतरेगी तभी इसकी कीमतें कंट्रोल मे आ पायेंगी। इसी दौरान लोकल फसल भी मार्केट मे आ जायेगी।
स्थानीय किसानो को नहीं होता फायदा
मजे की बात यह है कि सब्जियों की एकाएक बढ़ी कीमतों के बाद भी स्थानीय किसानो को कोई फायदा नहीं होता। इसका मुख्य कारण उनकी आर्थिक स्थिति और खेती की तकनीक का आभाव है। छोटे किसानो के पास न तो पूंजी है और नां ही फसल रोकने की गुंजाईश। महज एक महीना पहले जिस टमाटर को कोई 5 रूपये मे नहीं पूंछ रहा था, वह अचानक 180 रूपये हो गया। वर्तमान मे यह दूसरे प्रांतों से आ रहा है। जिन्हे बड़े-बड़े पॉली हाउस मे आधुनिक तरीके से तैयार किया जाता है। इनकी टाईमिंग भी बड़ी सटीक है। अधिकांशत: जब बारिश मे बाकी जगहों से आवक खत्म होती है, बड़े फार्मर अपनी फसलों की सप्लाई शुरू कर देते हैं। इस तरह बाजार की तेजी से ही उन्हे कराड़ों रूपये की कमाई हो जाती है।
क्या खायें, क्या नहीं
केवल टमाटर ही नहीं अन्य सब्जियों की भी यही हालत है। जिले मे हरा धनिया 150 रूपये, भिंडी 60 से 80, लौकी 35 से 40, प्याज 25 से 30, आलू 20 से 25, परवल 80 रूपये प्रति किलो मे मिल रहा है। दाल, आटा और चावल तो पहले ही सांथ छोड़ चुके हैं। अब लोगों के सामने यही दुविधा है कि क्या खायें, क्या नहीं।

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