चीखती रही बाघिन, सोता रहा प्रबंधन
बांधवगढ़ से भटक कर आई मादा की मौत, घुनघुटी के जंगलों मे मिला शव
बांधवभूमि, तपस गुप्ता
बिरसिंहपुर पाली। जिले मे दुर्लभ जीव बाघों की मौत का सिलसिला अनवरत जारी है। वर्ष 2022 के विदाई की बेला मे एक और मादा बाघिन यहां से रूखसत हो गई। जानकारी के मुताबिक इस वयस्क बाघिन का शव गत दिवस सामान्य वन मण्डल अंतर्गत घुनघुटी परिक्षेत्र के काचोदर बासाड़ नाला के पास पाया गया। अमले की सूचना मिलते ही वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंच गये और हालात का जायजा लिया। मृत बाघिन की आयु 8 से 10 साल के बीच बताई गई है। शव के पोस्टमार्टम के उपरांत उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया है।
भूंख-प्यास से हुई मौत
स्थानीय ग्रामीणो का कहना है कि संभवत: मादा बघिन की मौत भूंख-प्यास के कारण हुई है। उन्होने बताया कि बाघिन कई दिनो से बीमार थी, जिसका संदेश वह चीख और दहाड़ कर लगातार दे रही थी। इसकी जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को होने के बावजूद इस संबंध मे कोई पहल नहीं की गई। यदि समय पर ट्रैक कर बाघिन का इलाज किया जाता तो उसकी जान बच सकती थी। वन्य जीव संरक्षण कार्य मे लगे लोगों का मानना है कि मादा की मौत बाघ प्रजाति के लिये दोहरा नुकसान है। इससे एक जानवर की संख्या कम होने के सांथ इनके वंशवृद्धि पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
घुनघुटी मे आकर मर रहे नेशनल पार्क के बाघ
बताया गया है कि घुनघुटी के जंगलों मे विचरण करने वाले अधिकांश वन्यजीव बांधवगढ़ नेशनल पार्क के ही होते हैं, जो भटक कर यहां पहुंच जाते हैं। सामान्य वन मण्डल मे घटित इस तरह की घटनायें पार्क प्रबंधन के लिये पिंड छुडाऊ होती है। क्योंकि वह इसे वन मण्डल का मामला कह कर जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेते हैं। ताजा साल मे ही घुनघुटी परिक्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों मे कई बाघ व तेंदुए मारे गये हैं। दावा है कि ये सभी बांधवगढ़ के ही हैं। वन्य जीव विशेषज्ञ भी बार-बार इस बात को उठाते रहे हैं, कि बांधवगढ़ के कई बाघ महीनों से गायब हैं, जिन्हे खोजने का कोई प्रयास पार्क के अधिकारियों द्वारा जानबूझ कर नहीं किया जाता।
टेरीटेरी फाईट का लबादा
नेशनल पार्क के अधिकारी हर घटना पर टेरीटेरी फाईट का लबादा ओढ़ कर कई सवालों से बचते रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि इस तरह की अधिकांश घटनायें करंट और शिकार से हो रही हैं। बीते कुछ समय से उद्यान मे पारधियों, शिकारियों और संदिग्ध लोगों की गतिविधियां लगातार देखी जा रही है। इससे पहले तक अधिकारी दौरे कर वन्यजीवों की सुरक्षा के इंतजाम स्वयं देखते थे। उनकी कड़ी मेहनत के कारण उद्यान बाघ-तेंदुओं जैसे जीवों से गुलजार हो सका, परंतु अब ऐसा नहीं है। वरिष्ठ अधिकारी सिर्फ मीटिंग-ईटिंग और सेटिंग मे व्यस्त है। यही हालात रहे तो पार्क को बाघों से वीरान होते देर नहीं लगेगी।
चीखती रही बाघिन, सोता रहा प्रबंधन
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