खतरों से खेलने पर मजबूर बेरोजगार
पेट की खातिर कर रहे कोयले का अवैध कारोबार, जोखिम मे सैंकड़ों जान
उमरिया। जिले मे अवैध रूप से कोयले की बिक्री का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। आज भी सैकड़ों बेरोजगार इस काम मे लगे हुए हैं। जो चंद रूपयों के लिये अपने जान की बाजी लगा कर पहले काले पत्थर का इंतजाम करते हैं, फिर इसे होटलों, ढाबों और ईट के भ_ों मे सप्लाई कर देते हैं। एक जानकारी के मुताबिक कोयलांचल क्षेत्र के कई युवा, महिलायें और बुजुर्ग बंद पड़ी पुरानी कालरियों, स्टेशन से गुजरने वाली मालगाडिय़ों और चालू माईन्स के आसपास से अवैध कोयले का प्रबंध करते हैं। फिर इसे बोरियों मे भर कर आवश्यकता वाले स्थानो तक पहुंचाते हैं। इस काम मे उन्हे पुलिस और कालरी के सुरक्षा गार्डो को झेलने के अलावा भयंकर खतरों का सामना भी करना पड़ता है। इन सब के बावजूद पेट चलाने के लिये इनके पास कोई रास्ता नहीं है।
बंद पड़ी खदानो मे घुस कर निकालते कोयला
गौरतलब है कि जिले के बिरसिंहपुर पाली, नौरोजाबाद और उमरिया मे कई स्थानो पर बंद हो चुकी भूमिगत कालरियां है। जबकि इन क्षेत्रों मे कुछ स्थान ऐसे हैं, जहां कोयला काफी ऊपर है। जहां से कोयला निकाल कर बेंचने का धंधा किया जाता है। इस काम मे जान का खतरा हरदम मंडराता रहता है। जानकारों का मानना है कि चल चुकी कोयला खदाने मीलों लंबी है, जहां भूल-भुलिइयां के अलावा जहरीले जीव-जंतुओं तथा छत बैठने जैसी जानलेवा जोखिम इनका इंतजार करती रहती हैं। इसके बावजूद मजदूर निडर होकर अपने काम को अंजाम देते हैं।
हो चुके हैं कई हादसे
कोयले का यह अवैध कारोबार केवल बंद पड़ी खदानो से ही संचालित नहीं होता। शहडोल-कटनी मार्ग से गुजरने वाली मालगाडिय़ां भी इसका एक प्रमुख जरिया है। क्षेत्र के कई युवाओं को इन गुड्स ट्रेनो से कोयला उतारने मे महारत हांसिल है। स्टेशन मे रूकने के दौरान या आऊटर के समीप धीमी होते ही ये लोग पलक झपकते मालगडिय़ों पर चढ़कर कोयला नीचे फेंकने लगते हैं। जबकि उनके अन्य साथी नीचे गिर रहे कोयले को समेटने मे जुट जाते हैं। ऐसे मे ना तो उन्हे ऊपर से गुजरने वाली हाईटेशन लाईन की चिंता रहती है, ना ही गिरने और जख्मी होने की।इस कारोबार से जुड़े लोगों का साफ कहना है कि उनके पास इसके अलावा अपना परिवार चलाने का कोई चारा नहीं है।
केन्द्र के कुनीतियों की मार झेलता कोयलांचल
उल्लेखनीय है कि केन्द्र की कुनीतियों तथा आर्थिक मंदी की सबसे ज्यादा मार कोयलांचल के लोगों पर पड़ी है। कई वर्षो से भर्तियां बंद हैं। वहीं एक खदान मे कम से कम एक हजार लोगों को रोजगार देने वाली एसईसीएल की कालरियां धीरे-धीरे बंद हो रही हैं। इनकी जगह निजी कम्पनियों को खदानो का संचालन सौंपा जा रहा है, जो 50-60 वर्करों को अस्थाई नौकरियां देकर मशीनो के जरिये रोजाना हजारों टन कोयला निकाल कर अपनी जेबें भर रही हैं। एसईसीएल के कर्मचारियों को जहां 50 से 80 हजार रूपये प्रति मांह वेतन मिलता है वहीं प्रायवेट कम्पनियां कर्मचारियों महज 10-15 हजार देकर चलता कर देती हैं। यदि यही हालात रहे तो उमरिया जिले मे बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही फुरसत युवा अपराध और अवैध कामो की ओर अग्रसर होंगे।
खतरों से खेलने पर मजबूर बेरोजगार
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