कर्तव्य पथ पर…चौदह कदम

विशेष संपादकीय-पं. राजेश शर्मा
आज आपका प्रिय पत्र दैनिक बांधवभूमि अपने चौदह वर्ष पूर्ण कर 15वें साल मे प्रवेश कर रहा है। अध्यात्म मे चौदह का विशेष महत्व है। यह निष्काम कर्म और संघर्ष का प्रतीक है। ‘चौदह’ शब्द भगवान श्रीराम के वनवास का स्मरण कराते है। जिन्हे इतनी ही अवधि के लिये राजपाट छोड़ कर वन गमन करना पड़ा था। जिन्होने प्रस्थान तो दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र और अयोध्या के राजकुमार के रूप मे किया, पर लौटे भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम बन कर। इसके पीछे थी उनकी न्यायप्रियता, सौम्यता, सभी वर्गो का सम्मान, उनके प्रति अपनत्व का भाव और अधर्म को जड़ से समाप्त करने दृढ़ता।
वन मे उनका सामना एक नहीं बल्कि अनेक मायावी आताताईओं से हुआ, जो अपनी शक्ति के अहंकार मे बौराये हुए थे। जगह-जगह शोषण, अन्याय और आतंक का बोलबाला था। कमजोर और गरीब चींटियों की तरह मसले जा रहे थे। संतो का हवन, पूजन, यज्ञ तक दूभर था और बुद्धिजीवी वर्ग अहित व अपमान के भय से मौन साध कर तमाशबीन बना बैठा था।
ऐसी विकट परिस्थितियों मे भी श्रीराम कभी विचलित नहीं हुए। उन्होने वानर, भालुओं जैसी अनेक बिखरी तथा उपेक्षित प्रजातियों को संगठित किया, और उनके सहयोग से समय की गति को रोकने का सामथ्र्य रखने वाले महाशक्तिशाली, रावण का वध कर पृथ्वी पर भयमुक्त प्रशासन स्थापित किया। भगवान के जीवन से यही प्रेरणा मिलती है कि चुप रहना अन्याय को प्रश्रय देना है और जो समाज जुल्म का विरोध नहीं करता भविष्य मे उसे ही भीषण पीड़ा सहनी पड़ती है। वर्तमान हालात भी कुछ ऐसे ही हैं, हर तरफ मनमानी का वातावरण है। जनता की आवाज उठाना और सच बोलना जैसे दुष्कर हो गया है। निष्पक्ष पत्रकारिता किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे मे पाठकों का प्रेम और अटूट विश्वास हृदय को संबल ही नहीं न्याय के लिये लडऩे का हौंसला भी देता है। पंद्रहवें वर्ष मे प्रवेश की पावन बेला पर दैनिक बांधवभूमि अपने संस्थापक एवं पितृ पुरूष पं. अर्जुनदास शर्मा का पुण्य स्मरण करते हुए पुन: यह संकल्प लेता है कि लोकतंत्र के प्रखर प्रहरी की भूमिका का निर्वहन और जनहित के लिये संघर्ष का क्रम निर्भीकता के सांथ अनवरत जारी रहेगा।
सद्भाव के लिये समस्त पाठकों के प्रति कोटिश: आभार, जय हिन्द

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