कब चलेगी गरीबों की ट्रेन

कब चलेगी गरीबों की ट्रेन
मंहगाई के सफर से हलाकान जनजीवन, कोई नहीं ले रहा सुध
उमरिया। कोरोना के मंद पडऩे और वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तेज होने के बाद हर जगह सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनैतिक सहित लगभग सभी गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं, परंतु रेल सुविधा अभी भी पटरी पर नहीं आ सकी हैं। विशेषकर गरीब और आम नागरिकों के लिये बेहद जरूरी समझी जाने वाली ट्रेनों के पहिये जाम हैं। इक्का दुक्का ट्रेनें चली भी तो उनका स्टापेज ही नहीं दिया गया है। ये ऐसी गाडिय़ां हैं, जो रोजाना हजारों लोगों को न्यूनतम भाड़े पर गंतव्य तक पहुंचाती हैं। इनके आभाव मे यात्री बसों और टेक्सियों का मंहगा सफर तय करने के लिये मजबूर हैं। दुर्भाग्य की बात यह भी है कि इतनी बड़ी समस्या के बाद भी जिम्मेदारों की ओर से कोई पहल नहीं की जा रही है।
पौने दो साल से बंद चिरमिरी ट्रेन
ज्ञांतव्य हो कि बिलासपुर-रीवा, चिरमिरी-कटनी, चिरमिरी-चंदिया और चिरमिरी-रीवा गाडिय़ां मार्च 2020 से बंद पड़ी हैं। इनमे से रीवा ट्रेन हाल ही मे चालू तो हुई पर जिले को इस पैसेंजर के स्टापेज के लायक नहीं समझा गया। शेष संचालित गाडिय़ों मे जनरल टिकट एलाऊ नहीं है। बंद पड़ी ट्रेने कटनी, सतना, रीवा के अलावा शहडोल और अनूपपुर जाने का अहम साधन थीं। इनके न चलने से हजारों नागरिक बीते पौने दो सालों से परेशान हैं।
बसों मे लग रहा तीन गुना किराया
ट्रेनो के न चलने के कारण लोगों को बसों मे तीन गुने से भी ज्यादा किराया देना पड़ रहा है। जानकारी के मुताबिक रेलवे द्वारा किराया बढ़ाने के बावजूद उमरिया से कटनी तक का जो सफर महज 35 रूपये मे पूरा हो सकता है, उसके लिये यात्रियों को 100 रूपये खर्च करने पड़ रहे हैं। वहीं मरीजों और बुजुर्गो के लिये बस का सफर तकलीफदेह भी है।
कोरोना का खतरा या अडानी की फिक्र
ट्रेनो को बंद रखने के पीछे लोगों के अलग-अलग तर्क और अनुमान हैं। जबकि जानकारों का दावा है कि यह सिर्फ अडानी का कोयला निर्बाद्ध तरीके से निकालने के कारण की गई कार्यवाही है। उनका तर्क है कि कोरोना के पहले से पैसेन्जर ट्रेनो को अचानक रद्द करने या लेट करने का खेला चल रहा है। अगर इन बातों मे दम है तो यह रेलवे जैसी वेलफेयर संस्था के लिये सचमुच शर्मनाक है।

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