…और खत्म हुंई हजारों नौकरियां

कर्मचारी लेस हुआ विद्युत विभाग, अधिकांश वितरण केन्द्र क्लर्कविहीन
बांधवभूमि, उमरिया
अन्य शासकीय विभागों की तरह जिले का विद्युत मण्डल भी अब कर्मचारी लेस होने जा रहा है। एक समय जिन कार्यालयों मे दर्जनो बाबू और चपरसियों का स्टाफ दिखाई देता था, वहां अब सारा काम एक आध मुलाजिम के मत्थे है। सूत्रों के मुताबिक विभाग के शहर और ग्रामीण वितरण केन्द्र मे महज एक क्लर्क बचा है, वह भी आने वाली 31 तारीख को सेवानिवृत्त होने जा रहा है। जिसके बाद दफ्तर मे कोई भी सरकारी बाबू नहीं बचेगा। ऐसे मे उपभोक्ताओं के बिजली बिलों को सुधारने जैसे रोजमर्रा के कार्य अन्य केन्द्रों की तरह कनिष्ठ अभियंता और निजी कम्प्यूटर ऑपरेटर संभालेंगे।
सब स्टेशन पहले से ही निजी हाथों मे
बताया गया है कि जिले मे 8 वितरण केन्द्र हैं, जहां 7 कनिष्ठ अभियंता पदस्थ हैं। एक का अतिरिक्त प्रभार मंगठार जेई के पास है। जबकि 19 सब स्टेशनो के तहत आने वाली लाईनो, उपकरणों, फाल्ट आदि का सुधार एक तरह से निजी हाथों मे सौंप दिया गया है। मतलब इस जगहों का कामकाज आऊट सोर्सिग के जरिये उपलब्ध कर्मचारी कर रहे हैं।
अपनाई गई चरणबद्ध प्रक्रिया
जानकारों का मानना है कि इस स्थिति के लिये सरकार ने चरणबद्ध प्रक्रिया अपनाई है। सबसे पहले कम्पनी मे भर्ती पर रोक लगा कर मेंटीनेन्स और रीडिग़ का कार्य ठेके पर सौंपा। फिर बिलिंग पेपरलेस हुई और नगद की जगह ऑनलाईन भुगतान पर जोर दिया गया। इस तरह से विद्युत विभाग मे बिना किसी आवाज के हजारों नौकरियां खत्म हो गई और किसी को पता ही नहीं चल पाया।
युवाओं का शोषण, कम्पनियों की चांदी
इस नीति का फायदा सिर्फ निजी कम्पनियां और ठेकेदार ही उठा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि विद्युत विभाग को स्टाफ मुहैया कराने की एवज मे हजारों रूपये ऐंठने वाली निजी कम्पनियां एक व्यक्ति को महीने मे महज 10-15 हजार रूपये ही वेतन देती हैं। बेरोजगारी से परेशान क्षेत्र के युवाओं के सामने शोषण सहने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। कुल मिला कर जिंदगी भर काम करने के बाद भी उनके हांथ मे कुछ नहीं बचेगा और सारा मुनाफा बिचौलिये ले जायेंगे।
बाजार पर दिखने लगा असर
आये दिन हो रहे रिटायरमेंट के बाद दफ्तरों मे सरकारी मुलाजिमो की जगह संविदा अथवा आऊट सोर्सिंग कर्मचारी लेते जा रहे हैं। दूसरी ओर बाबुओं को 40 से 60 हजार महीना तन्ख्वाह की जगह वही काम 15 से 25 हजार मे करवा कर सरकार भी खुश है। हलांकि इसके कई नुकसान भी सामने आ रहे हैं। भीषण मंहगाई के दौर मे कम होती आय से दफ्तारों मे भ्रष्टाचार लगातार बढ़ रहा है। सरकारी महकमो के स्टाफ और वेतन घटने से बाजारों की रौनक कम हुई है। दुकानदारों का कहना है कि अब ग्रांहकी केवल शादी या त्यौहारों पर ही उठती है, बाकी दिन फुरसत ही फुरसत है।

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