समस्या: उमरिया मे भूंख-प्यास सह कर ट्रेनो का इंतजार करते हैं यात्री
बांधवभूमि, उमरिया
जिला मुख्यालय का रेलवे स्टेशन आज भी बुनियादी सुविधााओं के लिये तरस रहा है। कहने को तो कई वर्ष पूर्व यह मॉडल स्टेशन घोषित किया जा चुका है, परंतु इंतजाम बेहतर होने की बजाय और बद्तर होते जा रहे हैं। और तो और प्लेटफार्म पर बनाये गये कैंटीन भी शो-पीस बन कर रह गये हैं। जहां खाने-पीने की चीजें उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे मे कई बार यात्रियों को भूंखे-प्यासे रह कर कई घंटे ट्रेनो का इंतजार करना पड़ता है। सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं और बच्चों को होती है। दिन मे तो फिर भी बाहर जाकर खाने-पीने की कुछ न कुछ व्यवस्था की जा सकती है, परंतु रात मे दुकाने बंद हो जाने से वह भी मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि प्लेटफार्म पर पानी की बॉटल तक नहीं मिलती और लोग इसके लिये यहां से वहां भटकते रहते हैं।
फल की जगह बिक रहे चिप्स, बिस्कुट
एक तरफ तो रेलवे ट्रेनों को समय पर नहीं चला पा रही है, वहीं दूसरी तरफ स्टेशनों पर यात्रियों को चाय-पानी के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है। बताया गया है कि उमरिया स्टेशन पर संचालित कैंटीन अधिकांश समय बंद रहती है, यदि खुलती भी है तो वहां निर्धारित मूल्य पर सामान नहीं मिलता। मजे की बात तो यह है कि जो कैंटीन फल बेचने के लिए है, वहां चिप्स और बिस्किट बेचे जा रहे हैं। संचालक द्वारा लोगों से तय कीमत से ज्यादा राशि वसूली जा रही है। इतना सब कुछ देखते हुए भी रेलवे प्रशासन चुप्पी साधे हुए है।
रेलवे ने 10 प्रतिशत बढ़ाया शुल्क
सूत्रों का दावा है कि रेलवे द्वारा कैंटीन शुल्क मे 10 प्रतिशत की वृद्धि करने के कारण अब यहां कोई भी धंधा ही नहीं करना चाहता। कैंटीन संचालकों ने बताया कि वे किसी भी तरह का सामान प्रिंट रेट से अधिक मे नहीं बेंच सकते, जबकि रेलवे उनसे जबरदस्त शुल्क वसूल रहा है। ऐसे मे वे जांय तो जांय कहां। कुल मिला कर स्टेशन पर माल बेंचना उनके लिये घाटे का सौदा बन गया है। उधर मंहगा सामान बेंचने के कारण आये दिन ठेकेदार के कर्मचारियों की यात्रियों से बहस होती रहती है।
केवल कमाई वाली चीजों की बिक्री
रेल प्रबंधन ने कैंटीन मे बच्चों के लिए दूध पाउडर, नैपकिन, दूध बॉटल, महिलाओं के लिए पैड आदि की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करने के निर्देश दिये हैं। इसके बावजूद कैंटीन संचालक इन सामग्रियों को नहीं रखा जा रहा है। कारण भी वही है कि जितनी बचत इसे बेंचने मे होगी, उससे कहीं ज्यादा रेलवे को बतौर टेक्स देना पड़ जायेगा। समझा जाता है कि इसी वजह से केंटीन मे केवल वहीं वस्तुएं बेंची जा रही हैं, जिसमे संचालक को कुछ कमाई होती है।
अव्यवस्थाओं का ‘मॉडल’ बना स्टेशन
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